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..' भगवती नोत्प्लावयति ? अईदादिममावाद , लोकस्थितिर्वा एपा वर्तते इति संग्रा तदेवाह-'लोमटिर' लोकस्थितिः लोकव्यवस्था, 'लोआणुमावे' लोक भावः लोकभावः भन्ते गौतमः भगववचनं प्रमाणयमाह-'सेत्र में सेवं भंते ! नि' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदा ! इति अर्थात् हे भगव भवता यदुक्तं तत् एवं ययार्थ भूतमेव 'जाव-विहरइ'. यात्र-विह संयमेन तपसा आत्मानं भावयन विहरति तिष्ठति । 'किरिया समता' त्रि समाता क्रियानिरूपण समासम् ॥ मृ० ६ ॥ . इति श्री-जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालतिविरचितायां श्र भगवतीसूत्रस्य ममेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां तृतीयशतकस्य तृतीयोदे
शकः समाप्तः ॥ ३-५ ॥ प्रश्न करे कि लवण समुद्र एक झलकमें जम्बूदीप को क्यों नहीं : देता है ? तो इसका समाधान यह है कि अरिहंत आदि के प्रभा से वह उसे नहीं भर सकता है । अथवा लोककी स्थिति ही ऐ। है । यहीयात 'लोयढिइ लोयाणुभावे इनपदों द्वारा प्रकट की गई अब अन्त में गौतम भगवान के वचन को प्रमाणभूत प्रकट कर हुए कहते हैं कि-'सेवं भंते ! सेवं भंते ति' हे · भदन्त ! आप जो कहा है वह सब यथार्थभूत ही है । इस प्रकार कहकर वे संय
और तप से आत्माको भावित करते हुए अपने स्थान पर बैठ गर 'किरिया सम्मत्ता' यह क्रियों निरूपण समाप्त हुआ ॥ सू० ६ ॥ जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराजकृत 'भगवती सूत्रकी प्रियदर्द
व्याख्याके तीसरे शतकका तीसरा उद्देशक संपूर्ण । કોણ એવી શંકા કરે કે લવણસમુદ્ર તેના એક જ ઉછાળાથી (ઝલકથી જંબદ્ધપ કેમ ભરી દેતે નથી? તે તેનું સમાધાન એ છે કે અરિહંત આદિના પ્રભાવથી એ मनत नथी. अथवानी स्थिति मेवी छे. मेक पातून प्रतिपाहन लोयहि ना मा पा द्वारा ४२वामा मा०यु छ. व गौतम स्वामी महावीर प्रसु. क्यतामा पातानी संपूर्ण श्रद्धा व्यस्त ४२ता ३३ छ'सेवं भंते! से ते.! ति = ભરત ! આપે જે પ્રતિપાદન કર્યું તે યથાર્થ જ છે. આ પ્રમાણે. કહીને વંદણ નમસ્કાર કરીને સંયમ અને તપથી આત્માને ભાવિત કરતા ગૌતમ સ્વામી તેમ स्थाने नसा गया. 'किरिया सम्मत्ता' सारी यानि३५ समाप्त थाय छे. सू. ६ જૈનાચાર્ય શ્રી ઘાસીલાલ મહારાજા ભગવતી સની પ્રિયદર્શિની એ - व्याभ्यानाजी शasanalam समाप्त. 13-५॥ :