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ममदतीने
नो यानरूपेण परंपति 'अयेगईए' आस्ति एका अपरः कविद् अनगारः उपर्युकं देवम् 'जाणं पास' यानं पश्यति यानरूपेणैव पश्यति नो देव पास' नो देव रूपेण परपति 'अत्येगइए' भस्ति एकफः कश्विन्तु अनगारः 'देव' वि पास' देवरूपेणापि पश्यति, 'जाणं पि पास' यानरूपेणापि पश्यति 'अस्वेगईए' अस्ति एककः कचि णो देव' पास' नो देव' पश्यति देवरूपेणापि न पश्यति 'जो जाणं पास' नो यानं पश्यति नवा यानरूपेणेव पश्यति एवंविधवैपम्येइत्र सर्वत्र अवधिज्ञानस्य विचित्रत्वमेव कारण वोध्यम् । पुनर्गोतमः पृच्छविअणगारेण भंते !' इत्यादि । हे भदन्त । अनगारः खलु 'भावि भप्पा' 'भावितात्मा 'देव' देवीम् 'वेउन्त्रिसमुग्याएणं' बेकियसमुद्घातेन 'समोअपनी विक्रिया शक्तिसे निष्पन्न किये गये शिविका आदि आकार वाले विमान द्वारा जाते हुए देवको देवरूप से ही देखता है 'णो जाणं पास ' विमानरूप से नहीं देखता है । 'अत्थे गईए' कोई एक अनगार 'जाणं पास नो देव पासह' देवको यानरूप से ही देखता है, देवो देवरूप से नहीं देखता है । 'अत्थेगईए कोईएक अनगार देव पिपासह जाणं पि पासई' देवको देवरूप से भी देखता हैं और
रूप से भी देखता है । 'अत्येगईए' तथा कोई एक अनगार ' णो 'देव' पास, नो जाणं पासह' देव को न देवरूप से ही देखता है और न यानरूप से ही देखता है । अवधिज्ञान द्वारा इस प्रकारसे विषयको जानने की जो विचित्रता है उसका कारण स्वयं अवधिज्ञानकी विचि
ता ही हैं । अब गौतमस्वामी प्रभु से पुनः पूछते है कि 'अणगारेण भंते! भाविप्पा' हे भदन्त ! जो भावितात्मा अनगार हैं वह 'देवि' देवी
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आयुशार हेवईये न लेवे छे, 'जो जाणं पासइ ' विभान लेतो नथा, ' अत्थे - गई जाणं पास, नो देव पासइ ठमगार हेवने विभान इसे देणे छे, हेव३ये हेमतो नथी. ' अत्येगईए देवं पि पासर, जाणं पि पासइ - गार हेवनेदेव३ये पाशु देथे छे भने यानइये देणे हे ' ' अत्येगईए पो देव' पास, नो जाणं पासइ ' तथा ४. आशुशार हेवने हेवईये पथ लेतो नथी. અને યાન ( વિમાન )રૂપે પણ જોતે નથી. અવિધજ્ઞાન દ્વારા વિષયને આ પ્રમાણે જાણવાની જે વિચિત્રતા છે, તેનું કારણ અવધિજ્ઞાનની પોતાની જ વિચિત્રતા છે, હવે गौतम स्वामी महावीर प्रभुने जीने न पूछे छे.' आणगारेण भंते । भावियप्पा ?