________________
५१८
भगवतीसूत्रे
रण्णा' शमेण देवेन्द्रेण देवराजेन 'दिव्या देवि जाव अभिसमभागया' दिव्या देवः मिन्यागता 'जारिसियाणं' यादृशिका खल 'सक्केणं देविदेणं देवरण्णा' शर्माण देवेन्द्रेण' देवराजेन 'जाब अभिसमभागया' यावत्-अभि समन्यागता यावत्पदस्योकोऽर्थः संप्रायः, 'तारिसिभाणं' तादृशिका सलु 'अम्हे वि' अस्माभिरपि 'जाय अगिसमभागया' यावत् - अभिसमन्वागना, तं गच्छामी णं' तद्गच्छामः खल व 'ree देविस वरण' शस्य देवेन्द्रस्य देवस्य 'अंतिभो' अन्तिकम् 'पाउन्भवामो' प्रादुर्भवामः उपस्थिता भवामः गच्छाम इत्यर्थः, 'पासामा' यस्ता ' देवि देवणी' शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'दिव्वं देविह्नि' दिव्यां देवर्द्धिम् 'जान- अभिसमन्नागयं' यावत्-अभिसमन्यागताम् सर्वथा आभोगपरिभोगविषयीकृताम्, यात्र'तारिसियाण' वैसी हो 'अम्हे हि वि जाव अभिसमन्नागया' हमने भी यावत् अभिसमन्वागत की है । 'तं' इसलिये 'गच्छामो णं' चले 'nute देविंद देवरपणो' देवेन्द्र देवराज शक्र के 'अंतिओ' पास 'पाउन्भवामो' उपस्थित होवें और उपस्थित होकर 'पासामो देखे 'देविंदस्स देवरपणो सफस्स' उस देवेन्द्र देवराज शक्र की उस 'दिव्वं देविद्वि' दिव्य देवर्द्धिको जो उसने 'जाव' यावत 'अभिसमन्नागयं' अपने भोगपरिभोग में लगा रखी है । यहां पर भी यावत शब्दका पूर्वोक्त अर्थ ग्रहण करलेना चाहिये । अर्थात् दिव्य देवधुति, दिव्य देवानुभाग लब्ध किया है प्राप्त किया है' ऐसा अर्थ यावत् पदसे यहां ग्रहण किया गया है ऐसा जानना चाहिये । और वह 'देविंदे देवराया सक्के' देवेन्द्र देवराज शक्र भी 'अम्हा वि' हमारी 'जाव अभिसमन्नागयं दिव्यां देविड्रिडं' यावत् अभिसमन्वागत दिव्य देवर्द्धि
એવી જ દિવ્ય દેવસમૃદ્ધિ આદિ અમે પણ ચાત્ અમારે અધીન કરેલ છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે અસુરકુમાર દેવોને એવા વિચાર આવે છે કે અમે પણ શક્રેન્દ્રના વી જ દિવ્ય સમૃદ્ધિ, દિવ્યતિ, દિવ્ય ખળ, દિવ્ય સુખ અને દિવ્ય દેવપ્રભાવ પ્રાપ્ત छे. तं गच्छामीणं सकस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतिओ पाउन्भवामी ' તે ચાલે આપણે દેવેન્દ્ર દેવરાજ શકની પાસે જઈએ અને देवरण सक्कस्स दिव्वं देवढि जाव अभिसमभागयं' તે દિવ્ય દેવસમૃદ્ધિ, દેવતિ આદિનાં દર્શન કરીયે. અહીં પશુ यह। श्रद्धष्णु उरायां छे. मने ' देविंदे देवराया सक्के ' हेवेन्द्र देवरान शेड प 'अम्हा वि' ले 'जाव अभिसमभागयं देव्वां देविडिंट पासउ ताव' आस रेस
4 पासामो देविंदस्स भले आप्त रेखी तेमनी ‘ચાચક્ષુ' પદથી પુક્ત