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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.३ सू. १ क्रियास्वरूपनिरूपणम्
६२५ परतकायक्रिया चं, दुष्पयुक्तकायक्रिया च, आधिकरणिकी खल भदन्त । क्रिया कतिविधा प्रज्ञप्ता ? मण्डितपुत्र! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-संयोजनाधिकरणक्रियाच, निर्वर्तनाधिकरण क्रिया च, प्रापिकी खलु भदन्त ! क्रिया कतिविधा प्रहप्ता ? मण्डितपुत्र ! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-जीव पाढेपिकी च, अजीव प्राद्वेपिकी च, पारितापनिकी भदन्त ! क्रिया कतिविधा प्रज्ञप्ता ? मण्डितपुत्र ! क्रिया कितने प्रकार की कही गई है ? (मंडियपुत्ता ! दुविहा पण्णत्ता) हे मंडितपुत्र ! कायिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है । (तंजहा) वे दो प्रकार ये हैं- (अणुवरयकायकिरिया य दुप्पउत्तकायकिरिया य) अनुपरतकायिकी क्रिया और दुष्प्रयुक्त कायिकी क्रिया । (अहिगरणियाणं भंते ! किरिया कइविहा पण्णत्ता) हे भदन्त ! अधिकरणिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है ? (मंडियपुत्ता ! दुविहा पण्णत्ता) हे मंडियपुत्र ! अधिकरणिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है (तंजहा) वे दो. प्रकार ये हैं-(संजोयणाहिगरणकिरिया य णिव्वत्तवाहिगरणकिरिया य) संयोजनाधिकरणनिया, और निर्वर्तनाधिकरण क्रिया ! (पाओसियाणं भंते ! किरिया कइविहा पण्णत्ता) हे भदंत ! प्रापिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है ? (मंडियपुत्ता ! दुविहा पण्णत्ता) हे मंडितपुत्र ! प्रादेषिकी क्रिया दो प्रकारकी कही गई हैं । (तंजहा) जैसे-(जीवपाओसिया य अजीवपाओसिया य) एक जीवप्रादेपिकी और दूसरी अजीवमादेपिकी । (पारियावणियाण (मंडियपुत्ता! दुविहा पण्णत्ता. तं जहा) 3 माहितपुत्र ! तन मे प्रा२ नाय अभाले छे-(अणुवरयकायकिरिया य दुप्पउत्तकायकिरिया य) (१) अनुपत -
यि nि (२) दुप्रयुतायिही ठिया. (आहिगरणिया णं भंते ! किरिया कइविहा पण्णता?) 8 महन्त ! माधिषिकी हियाना ॥ २ छ? (मंडियपुत्ता ! दुविहा पण्णत्ता-तं जहा) डे मीडितY ! साधि४२ीि डियाना नीय प्रभाओं में ४२ छ - (संजोयणाहिगरणकिरिया य णिवत्तणाहिगरणकिरिया य) (१) संयोनsREA या (२) नितनाधि जिया. (पाओसियाणं भंते ! किरिया काविहा पण्णता ? ) 3 महन्त ! प्राईपीडियाना eal २ छ ? (मंडियपुत्चा !) 3 भाडितyii ! (दुविहा पण्णत्ता -तं जहा)- तेनामे | नीय प्रभा -(जीवपाओसिया यः-अजीवपाओसिया य) (१) पाठिी अने (२) माविका (पारियावणियाणं भंते ! कि