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भगवतीय
न्द, पते, शुपति, उदरगत तं तं मात्रं परिणमति ? हन्त, मण्डितपुत्र जीपः सदा समितम् - पनते, यावत्-चं तं भावं परिणमति, यारम खलु मदन्य स जीवः सदा समितम् यावत्-परिणमति, सावन तस्य जीवस्य, अंते अन्तक्रिया सदा समित रागादि सहित अर्थात् रागीपसहित होता है, अथव (समियं एजते) रागद्वेष सहित कांपता है । (येग्रह) विशेषरूप से अथवा विविधरूप से कांपता है । (चल) एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है (कंद) कुछ चलता है । अथवा दूसरे स्थान पर जाकर पुनः अपने स्थानपर वापिस आ जाता है (घ) सर्व दिशाओं मे जाता है (खुम्भः) क्षुभित प्रचलित होता है | ( उदीर) प्रबलता प्रेरणा करता है । इस तरह जीव ( तं तं भावं परिणमह) क्या उन उन भावरूप परिणमता है क्या ? (हंता मंडियपुत्ता ! जीवे णं सपा समियं एइ, जाव तं तं भावं परिणमद) हां मंडितपुत्र ! जीव सदा रागादि सहित रहता है-अथवा रागदेष सहित कांपता है यावत् उन २ भावरूप परिणमता है । (जावं चणं भंते! से जीवे सया समिधं जाव परिणम, तावं च णं तस्म जीवस्स अंते अंतकिरिया भंवर - ) हे भदन्त ! जब तक वह जीव सदा समित रागादि सहित बना रहता है अथवा राग सहित कांपता है यावत् उन२ भावरूप परिणमता हाय हे भेटले रागदेषथी युक्त होय छे ? अथवा ( समियं एजते ) રાગદ્વેષ सहित हुये छे ? (४यन रे - शहना अर्थ टीडार्थमा स्पष्ट यछे, (वेयर) विशेषज्ञये अथवा विविध शते ४ छे ! (चल) मे स्थानथी जीने स्थाने लय हो ? (ક) ચેડા પ્રમાણુમા ચાલે છે-અથવા એક સ્થાનેથી બીજે સ્થાને જઇને ફરી घाताने स्थाने पाछे। ईरे छे ? (घट्टइ) सर्वे हिशासभां लय छे ? (सुभइ) • क्षुलित अयक्ति थाय छे ? (उदीरइ) प्रणलतापूर्व प्रेरया रे हे? आ रीते लव (तं तं भावं परिणमइ) शुद्ध ते ते भावश्ये परिशुभे छे मरे ? ( हंता मंडियपुत्ता ! ) डा, मंडितपुत्र ! (जीवे णं सया समियं एयइ, जाव तं तं भावं परिणमइ) व सहा રાગાદિ સહિત રહે છે અથવા શદ્રેષ સહિત કંપે છે ( યાવત્.) તે તે ભાવરૂપ રિણમે છે. અહીં यावत् ' પદથી ઉપરોકત સૂત્રપાઠ ગ્રહણ કરવો જોઇએ. ( जावं च णं भंते ! से जीवे सयासमियं जाव परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस अंते ! अंतकिरिया भवइ ) डें महन्त !" न्न्यां सुधा त्र सहा समितरागादिथी युक्त होय छे अथवा शेष सबिता ४थे. छे. (यावत्) ते ते भावश्य
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