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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ. ३ २.१ क्रियास्वरूपनिरूपणम् मार्दवं तेन संपन:-अर्थात् अत्यन्तसरल इत्यर्थः, आलीन:-आश्रितः-गुरोरनुशासने तत्परः, अतएव भद्रक:-प्रकृत्या ऋजुः, विनीतः अतिनम्र इत्यर्थः 'कइणं भंते ! कति खलु कियत्यः भदन्त ! 'किरियाओ पण्णत्ता' क्रियाः प्रज्ञप्ताः कति संख्यकाः क्रियाः कथिताः ? क्रिया कति भेदा:-क्रिया च कर्मवन्धनस्वरूपा, भगवानाह -'मंडिअपुत्ता " इत्यादि । हे मण्डितपुत्र ! 'पंच किरियाओ' पश्चक्रियाः 'पण्णत्ताओ' प्रनप्ताः तद्भेदस्वरूपमाइ-तं जहा' तद्यथा 'काइया, अहिगरणिमा, 'पाओसिया, पारियावणिया, पाणाइवायकिरिया' कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेपिकी, पारितापनिकी, माणातिपातक्रिया, तत्र कायिकी क्रियायाः स्वरूपन्तु-चीयतेऽसाविति कायः शरीरम्, तत्र भवा तेन का निर्धत्ता क्रिया कायिकी इत्युच्यते, आधिकरणिकी-अधिनियते नीयते नरकादिदुर्गती गुम के अनुशासन में सदा रहते थे । इसी कारण से प्रकृति से ऋजु थे। अति नम्र थे । प्रभु से इन्होंने जो प्रश्न किया वह इस प्रकार से है-कइणं भंते ! किरियाओ पण्णत्ता' हे भदन्त | क्रियाएँ कितनी कही गई हैं ? अर्थात् क्रिया के कितने भेद हैं ? कर्मों के बंधन में कारणभूत जो चेष्टा है उसका नाम क्रिया है । मंडितपुत्र के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु उनसे कहते हैं कि-'मंडियपुत्ता' हे मंडितपुत्र ! पंच किरियाओ पण्णताओ' क्रियाएँ पांच प्रकार की कही गई हैं। 'तंजहां जो इस प्रकार से हैं.'काइयाअहिगरणिया, पाओसिया, पारियावणिया, पाणाइवाकिरिया' कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादेपिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपातक्रिया । अस्थ्यादिका चयरूप जो होता है उसका नाम काय-शरीर है । इस शरीर से जो किया होती है, अथवा इस शरीर के द्वारा जो क्रिया होती है वह कायिकी અને અતિ નમ્ર હતા. તેમણે મહાવીર પ્રભુને વંદણા નમસ્કાર કરીને વિનય પૂર્વક 'एवं वयासी' मा प्रमाणे पूछ्यु-कडणं भंते !किरियाओ पण्णत्ताओ' 3 महन्त ! ક્રિયાઓના કેટલા પ્રકાર છે? કર્મોના બંધનમાં કારણભૂત જે ચેષ્ટા છે તેને ક્રિયા કહે છે.
6त्त२-'मंडितपुत्ता! 3 मलितपुत्र मार ! 'पंचकिरियाओ पण्णत्ताओ' यामेपांय प्रान 30. 'तं जहा ते ४३ नीय प्रमाणे -'काइया अहिंगरणिया, पाासिया, पारियावणिया, पाणाइचायकिरिया' (१) ४॥यित्री, (२) माथि डी, (3) आहे विधी, (४) पारितापनि मन (५) प्रातिपात या.
અસિથ આદિના સમૂહ રૂપ કાય (શરીર) હોય છે. તે શરીર વડે જે ક્રિયા થાય છે તે ક્રિયાને કાયિકી ક્રિયા કહે છે. જેના દ્વારા આત્મા નરક આદિ દુર્ગતિમાં જવાને