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भगवतीने Pणा' रामेण देवेन्द्रेण देवराजेन 'दिव्या देविहीं नाप अमिसमन्नागया' दिव्या देवदिः यायद अभिसमन्वागता 'जारिमियाणं' याशिका खलु 'सरकेणं देवि. रंग देवरण्णा' शोण देवेन्द्रेण' देवराजेन 'जाव अमिसमभागया' यावत्-अभिसमन्वागता, यावत्पदस्योक्तोऽर्थः संग्रादाः, 'तारिसिभाणं ताशिका सलु 'अम्हे चे' अस्माभिरपि 'जाय भगिसमभागया' यावत्-अभिसमन्वागता, तं गच्छामो ग' तद्गच्छामः खलु ययम् 'सरकस्स देविदास देवरण्णो' शस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'अंतिओ' अन्तिकम् 'पाउमवामो' मादुर्भवामः उपस्थिता भवामः गच्छाम इत्यर्थः, पासामो तार' पश्यामस्तायत 'सयास्स देविंदस्स देवरण्गों' शमस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'दिलं देविट्टि' दिव्यां देवर्द्धिम् 'जार-अभिसमनागय' यावत्-अभिसमन्वागतम् सर्वथा आमोगपरिभोगविषयीकृताम् , याव'तारिसियाण' वैसी हो 'अन्हें हि विजाय अभिसमन्नागया' हमने भी यावत् अभिसमन्वागत की है । 'तं' इसलिये 'गच्छामो णं' चले 'सफस्स देविंदस्स देवराणो' देवेन्द्र देवराज शक के 'अंतिओ' पास 'पाउभयामो' उपस्थित होवें और उपस्थित होकर 'पासामो' देखे 'देविंदस्स देवरण्णो सफस्स' उस देवेन्द्र देवराज शक्र की उस 'दिव्वं देविट्टिदं दिव्य देवद्धिको जो उसने 'जाव' यावत 'अभिसमन्नागयं' अपने भोगपरिभोग में लगा रखी है । यहां पर भी यावत् शब्दका पूर्वोक्त अर्थ ग्रहण करलेना चाहिये । अर्थात् दिव्य देवधुति, दिव्य देवानुभाग लब्ध किया है प्राप्त किया है। ऐसा अर्थ यावत् पदसे यहां ग्रहण किया गया है ऐसा जानना चाहिये । और वह 'देविंदे देवराया सक्के' देवेन्द्र देवराज शक्र भी 'अम्हा वि' हमारी 'जाव अभिसमन्नागयं दिव्यां देविड्रिह' यावत् अभिसमन्वागत दिग्ग देवर्द्धि એવી જ દિવ્ય દેવસમૃદ્ધિ આદિ અમે પણ જાઅમારે અધીન કરેલ છે કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે અસુરકુમાર દેવોને એ વિચાર આવે છે કે અમે પણ શદ્રના જેવી જ દિવ્ય સમૃદ્ધિ, દિવ્યદ્યુતિ, દિગ્ય બળ, દિવ્ય સુખ અને દિવ્ય દેવપ્રભાવ પ્રાપ્ત या छ. तं गच्छामो णं सकस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतिओ. पाउब्भवामो' तो सापणे वेन्द्र १२ शनी पासे ये सन 'पासामो देविंदस्स देवरको सक्कस्स दिव्वं देविडू नाच अभिसमन्नागय भास रेसी मनी तय समृद्धि, विधुति महिना नि शेय. मही ५ 'या' या पुस्त जा सयां छ. मन देविदे देवराया सक्के' हेवेन्द्र ३५२१०४ : ५५ 'अम्हा वि' मापणे 'जाव अभिसमभागयं देवां देविड्ढि पासउ ताव' प्राप्त रेस