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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ. २ सु. ११ शक्रचमरयोर्गतिस्वरूपनिरूपणम् ४९१ 'देविंदस्स देवरणो' देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'उद्धं उप्पयणकाले ऊर्चम् उत्पतनकालः किन्तु 'ओवयणकाले' अवपतनकालः 'संखेनगुणे' संख्येयगुणो वर्तते । चमरविपये प्रतिपादयति-'चमरस्स वि' चमरस्यापि 'जहासकस्स' यथासूत्रकी दूसरी टीका के आधार से लिखी गई है ऐसा जानना चाहिये विवक्षित टीकाकारने यह व्याख्या नहीं लिखी है । इस प्रकार यह गतिविपयक क्षेत्रकी अल्प बहुता प्रकट की गई है । अब गौतम स्वामी श्रमण भगवान महावीर से गति के काल की अल्प बहुता पूछते हैं-'सकस्स णं भंते' इत्यादि । हे भदन्त ! 'देविंदस्स देवरणो सक्कस्म' देवेन्द्र देवराजशक्रके 'ओवयणकालस्स य उप्पयणकालस्स य कयरे कयरेहितो अप्पे वा, यहुए चा, तुल्ले वा विसेसाहिए वा ?' अवपतनकाल (नीचे जानेका) और उत्पतनकाल (ऊपर जानेका) के बीच में कौनसा काल कौनसे कालसे अल्प है, कौन से काल से अधिक है, कौनसे कालके साथ तुल्य है और कौन से काल से विशेपाधिक है ? इसके उत्तरमें प्रभु गौतमसे कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'देविंदस्स देवरपणो सक्कस्स' देवेन्द्र देवराज शक्रका 'उड्ढं उप्पयणकाले' उर्ध्वमें उत्पतनकाल 'सव्वत्थोवे' सबसे कम है। परन्तु 'ओवयणकाले संखेजगुणे' अवपतनकाल (नीचे जानेका) संख्यात गुणा है अब चमर के विपयमें प्रभु कहते हैं कि-'चमरस्स वि जहा सक्कस्स नवरं सव्यत्योवे ओवयकाले, उप्पयબીજી ટીકાને આધારે લખવામાં આવી છે, એમ સમજવું. આ રીતે ગતિવિષયક ક્ષેત્રની ન્યૂનતા તથા અધિકતા દર્શાવવામાં આવી છે. હવે ગતિના કાળની ન્યૂનતા તથા અધિ४तान विषयमा गौतमस्वामी भगवान महावीर प्रसुने प्रश्न पूछे थे-'सक्कस णं मंते छत्या 3 महन्त ! देविंदस्स देवरणो सक्कस्स ओवयणकालस्स य उप्पयणकालस्स य कयरे कयरे हितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए का ? હે ભગવન દેવેન્દ્ર દેવરાજ શકના ઉર્વગમન કાળ અને અધોગમન કાળની સરખામણી કરવામાં આવે તે તે બે કાળમાંથી યે કાળ કયા કાળથી ન્યૂન છે, ક કેના કરતાં અધિક છે, કયા કેની બરાબર છે, અને કેના કરતાં વિશેષાધિક છે? ભગવાન મહાવીર प्रभु ४९ छ : 'गोयमा' है गौतम ! 'देविंदस्स देवरणो सक्कस्स' हेवेन्द्र हे? शहने। 'उदं उप्पयणकाले आमना सन्चथोवे' सोयी माछी छे. ५ 'ओवयणकाले संखजगणे अधोगमन आज तेथी सज्यात गो छे. 'चमरम्स वि जहा सक्कस्म नवरं सव्वत्थोवे ओवयणकाले, उप्पयणकाले संखेजगुणे'