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ममेयंचन्द्रिका टीका. श. ३ उ. २ सू. १२ चमरस्य क्षमामार्थनादिनिरूपणम् ४९७ संपविष्टः करतलपर्यस्तमुखः, आर्तध्यानोपगतः, भूमिगतया दृष्टया ध्यायति, ततः तं चमरम् अनुरेन्द्रम्, असुरराजम् सामानिकपर्पदुपपन्नकाः देवाः, अपडतमनस्संकल्पं यावत्- ध्यायन्तं पश्यन्ति, करवलं यावत् - एवम् अवादिपुः - किं देवानुमिया ! अपदतमनसंकल्पाः यावत् ध्यायय । ततः स चमरः असुरेन्द्रः अम्मरराजः तान् सामानिकपर्षदुपपन्नकान् देवान् एवम् अवादीत् एवं खलु संप्पे ) उसके मानसिक विचार बिलकुल लुप्त हो गये थे (चिंता सोगसागरसंपवि) चिंता और शोकरूपी सागर में वह प्रविष्ट हो रहा था ( करयलपल्हृत्य मुखे ) मुख को उसने हाथ की हथेली पर रखा था (अट्टज्झाणोवगए ) आर्त्तिध्यान से युक्त था, (भूमिगयाए दिट्टीए झियाइ) उस समय उसकी दृष्टि भूमिकी ओर नीचे हो रही थी, इस तरह की स्थिति में बना हुआ वह बैठा२ सोच रहा था (तए णं तं चमरं असुरिंदं असुररायं सामाणियपरि सोववन्नया देवा ओह्मण संकष्पं जाव झियायमाणं पासंति) इसी समय निष्फल मनोरथ हुए यावत् सोच विचार करते हुए उस अमुरेन्द्र असुरराज चमरको सामानिक परिषदों में रहे हुए देवोंने देखा ( करयल जात्र एवं वयासी) देखकर उन्होंने उसे दोनों हाथ जोड़कर उससे ऐसा पूछा (किं णं देवाणुपिया ! ओहयमणसंकप्पा जाव झिया यह ? ) हे देवानुप्रिय ! आप आर्तिध्यान क्यों कर रहे हैं ? (तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया ते सामाणियपरिसोवचन्नए देवे सुरत थ गर्छ हुती, ( चिंनासोयसागरसंपविट्टे ) ते चिंता भने शो सागरमां डूमेो हतो, (करयल पन्हत्थमुखे ) तेथे हाथनी हथेलीने आधारे भुमने टेब्यु तु, (अट्टज्झाणो गए) ते मातध्यानभां सीन तो, ( भूमिगयाए दिडीए झियाइ ) તેની નજર જમીન તરફ ચાંટેર્લી હતી. આ રીતે બેઠા બેઠા તે વિચાર કરી રહ્યો હતેા. (तपणं तं चमरं असुरिंदं असुररायं सामाणियपरिसोववन्नया देवा ओहयमणसंकल्प जावं झियायमाणं पासंति) नेना मनोरथो निष्ण गया है, भने ५२ દર્શાવ્યા પ્રમાણેની પરિસ્થિતિમાં મૂકાયેલા, વિચાર મગ્ન તે અસુરરાજ અસુરેન્દ્ર ચમરને सामानि देवेाये लेयेो. ( करयलं जाव एवं वयासी) तेभो हाथ लेडीने तेने आ प्रभा पूछ- (किं णं देनाणुप्पिया ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह ? ) હે દેવાનુપ્રિય ! જેના મનોરથ નિષ્ફળ નિવડયા છે એવા આપ ા વિચાર કરી રહ્યા છે? (तरणं से चमरे असुरिंदे असुरराया ते सामाणियपरिसोववन्नए देवे एवं क्यासी)