________________
४९८
.
-
-
-
--
... ' भगवतीसंत्रे देवानुमियाः ! 'मया श्रमणं भगवन् महावीरं निश्रया शको देवेन्द्रः, देवराजः स्वयमेव अत्पाशातितः, ततः खलु तेन परिकुपितेन सता मम बघाय वयं निःसृष्टम् , तद्भद्रं भवतु देगनुमियाः ! श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य, यस्यास्मि प्रभावेण अक्लिएः, अव्यथितः, अपरितापितः, इह आगतः, इह समवस्तः, इट समाप्त:, इंटव अद्य यावत् उपसंपच विहरामि, तद्गच्छामो देवानुमिया। एवं पयासी ) इसके . पाद उम असुरेन्द्र असुरराज चमरने उन सामानिक परिपदा में उत्पन्न हुए देवासे इस प्रकार कहा ( एवं खल देवाणुप्पिया ! मए समणं भगवं महावीरं णीसाएसक्के देविदे देवराया सयमेव अच्चासाइए) हे देवानुप्रियो ! मैंने श्रमण भगवान महावीर की निश्रा से देवेन्द्र देवराज शक को स्वयं ही शोभा से भ्रष्ट करने का प्रयत्न किया-उसका तिरस्कार किया (तए णं तेणं परिकुविएणं ममं बहाए वज्जे निसिट्टे तय कुपित होकर उस शक्रने मुझे मारने के लिये अपना वज्र फेंका परन्तु (तं भईणं भवत देवाणुप्पिया 1 समणस्स भगवओ महावीरस्स) हे देवानुप्रियो । भगवान् महावीरका भला होवे (जस्स म्हि पभा. वेणं अकिटे, अन्धहिए, अपरिताविए, इह मागए, इह समोसढे, इह संपत्ते, इहेव अज जाव उवसंज्जित्ता णं विहरामि) कि जिस महा। वीर प्रभु के प्रभाव से मैं अक्लिप्ट, अव्यथित और अपरितापित होकर यहां आगया हूं, यहाँ समवस्त हुआ ह, यहां संप्राप्त हुआ हूं त्यारे त मसुरेन्द्र मसु२००० यभरे त साभानि वान मा प्रभारी छु- ( एवं खलु देवाणुप्पिया!) हेपानुप्रिया! (मए समणं भगवं महावीरं णीसाए सक्के देविदे देवराया सयमेव अचासाइए) में प्रमाण मावान महावीरन माश्रय લઈને મારી જાતે જ દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રને અપમાનિત કરવાના પ્રયત્નો કર્યા. (तएणं तेणं परिकुपिएणं समाणेणं ममं वहाए धज्जेनिसिह) त्यारे पायमान ये तो भने भा२पाने भाट व छ। यु, ५ (तं भईणं भवतु 'देवाणुप्पिया! समणस भगवओ महावीरस्स) वानुप्रिया! बधु थाय ते श्रम मापान महावीरनु (जस्स म्हि पभावेणं) मना प्रभावधी (अकि, अन्नाहिए, अपरिताविए, इहमागए, इह समोसटे, इह संपत्ते, इहेव अज्ज जाव उवसपन्जिताणं विरामि) Alsare, भव्यथित, भने अपरितापित सही भी શકયે , અહીં સમવત થયો છે, અહી સંપ્રાપ્ત થયા છે [પોંશે 7 અને