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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३ उ. २ स. १२ चमरस्य क्षमाप्रार्थनादिनिरूपणम् ४९९ श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दामहे नमस्यामः यावत - पर्युपास्महे इति कृत्वा चतुःष्टया सामानिकसाहस्रीभिः यावत् सर्वदर्घा यत्रैव अशोकवरपादपः, यंत्रव मम आन्तिकस्तत्रैव उपागच्छति, उपागम्य माम् त्रिकृत्वः आदक्षिणप्रदक्षिण यावत् - नमस्थित्वा एवम् अवादीत् एवं खलु भदन्त 1 मया तव निश्रया शक्रो देवेन्द्रो देवराजः स्वयमेव अत्याशातितः यावत्-तद्भद्रं भवतु देवानुप्रियाणाम्, और यहीं पर आज यावत् उपसंपन्न होकर सुरक्षित वन सका हूं । (तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! ममणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो जाब पज्जुवासामोत्तिकहु) तो इसलिये हे देवानुप्रियो । चलो चलें उन श्रमण भगवान को वंदना करें, उन्हें नमस्कार करें यावत् उनकी पर्युपासना करें | इस प्रकार कह कर ( चउसट्ठीए सामाणियसाहस्साहि जाव सचिड्ढीए-जाव जेणेव असोयवरपायवे, जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छद्द ) वह चौसठ हजार सामानिक देवों के साथ अपनी समस्त क्रुद्धि से युक्त हुआ जहां पर श्रेष्ठ अशोक वृक्ष था और जहाँ पर मैं था वहाँ पर आया ( उवागच्छित्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं जाव नमसित्ता एवं वयासी) वहां आकरके उसने मेरी प्रदक्षिणा पूर्वक तीन वखत वंदना की, यावत् नमस्कार कर फिर वह इस प्रकार से कहने लगा- ( एवं खलु भते । मम तुब्भं नीसाए सक्के देविंदे देवराया सयमेव अच्चासाइत्तए) हे भदन्त ! अकेले ही मैंने आपकी सहायता से देवेन्द्र देवराज शक्र को शोभा से महीं सुरक्षित रीते पाहो मेरी राञ्ज्यो छु . ( तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो जात्र पज्जुवासामो) तो हे हेवानुप्रियो ! थाले। આપણે બધાં તે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર પાસે જઇએ અને તેમને વંદણા નમસ્કાર श्रीने तेमनी पर्युपासना उरी. (तिकट्टु ) या अभहीने ( चउसहीए सामाणियसाहसाहिं जाव सविट्टीए - जाव जेणेव असोयवरपायवे, जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छ) योसह डलर सामानि देवानी साथै, पोतानी सघंजी ऋद्धि सहित, मशोऽवृक्षनी नीचे हुं मेहेलो हतो, त्यां ते माग्यो (उवागच्छित्ता ममं तिक्खुतो आयाहिणपयाहिणं जाव नमसित्ता एवं वयासी) भारी पासे भावीને તેણે ત્રણુ વાર મારી પ્રદક્ષિણા કરી, મને વંદણા નમસ્કાર કરીને તે આ પ્રમાણે એણ્યે( एवं खलु भंते ! मम तुन्भं नीसाए सक्के देविंदे देवराया, सयमेव अच्चा . (साइत्तए) के लहन्त ! में आपनी सहायतार्थी हाथे
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देवेन्द्र देवराम शहने