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प्रमेयचन्द्रिका टी. श. ३ उ. २ स. ११ शक्रचमरयोर्गतिनिरूपणम्
असुरराजस्य 'उडूं आहे, तिरियं च ' ऊर्ध्वम्, अघः तिर्यक् च 'गतिविसयस्स' गतिविषयस्य मध्ये 'कयरे' कतरः को गतिविषयः 'कयरेहिता' कतरेभ्यः केभ्यो गतिविषयेभ्यः 'अप्पे वा' अल्पो वा' वहुए वा' बहुर्वा 'तुल्ले वा' तुल्यो वा 'विसेसाहिए वा' विशेषाधिको वा ? भगवानाह 'गोयमा!' 'सव्वत्थोवं' सर्व स्तोकं' सर्वतोन्यूनम् ' खेत्तं ' क्षेत्रम् ' चमरे असुरिंदे असुरराया' चमरः असुरेन्द्रः असुरराजः 'उड्डउप्पयइ' ऊर्ध्वम् उत्पतति एक्केणं समएणं' एकेन समयेन 'तिरियं संखेज्जे भागे गच्छ' तिर्यक्संख्येयान भागान- प्रदेशान् गच्छति 'अहे संखेज्जे भागे गच्छ' अधःसंख्येयान् भागान गच्छति । वज्रविषये प्राह 'वज्जस्स' वज्रस्य जहसक्क्स्स तहेव' यथा शक्तस्य तथैव असुररण्णो चमरस्स' असुरेन्द्र असुरराज चमर का जो 'उड्ड अहे तिरियं च गइविसयस्स' उर्ध्व, अधः एवं तिर्यग् गन्तव्य स्थानरूप क्षेत्र है उसके बीच में 'कयरे' कौन सा क्षेत्र 'कयरेहिंतो' कौन से क्षेत्रों की अपेक्षा 'अप्पे वा' अल्प है 'बहुए वा' कौनसे क्षेत्रों की अपेक्षा बहुत हैं 'तुल्लेवा' कौन से क्षेत्रों की अपेक्षा तुल्य है और कौन से क्षेत्रोंकी अपेक्षा 'विसेसाहिए वा' विशेषाधिक है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं 'गोयमा' इत्यादि, हे गौतम ! 'असुरिंदे असुरराया उ सव्वत्थोवं खेत्तं एक्केणं समएणं उप्पयह' असुरेन्द्र असुरराज चमर उर्ध्व में सब से कम क्षेत्रतक एक समय में जाता है । ' तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ' तथा तिरछे क्षेत्र में वह एक समय में संख्यात भागों प्रदेशों तक जाता है । 'अहे संखेज्जे भागे गच्छछ' और अधः भी संख्यात भागों-प्रदेशों तक जाता है। 'बज्ज' जहां सकस्स च गइविसयरस' डे महन्त ! असुरेन्द्र असुररान यभरना उर्ध्व अधो भने तिय-गभनना क्षेत्रनी तुलना श्वामां आवे तो 'कयरे कयरेहिता अप्पे वा, वहुए वा, तुल्ले वा, विसेसाहिए वा' यु क्षेत्र अनाथी मह छे, ध्यु क्षेत्र अनाथी अधिछे, કયું ક્ષેત્ર કે।ની ખરાખર છે અને કયુ ક્ષેત્ર કયા ક્ષેત્રથી વિશેષાધિક છે ? આ પ્રશ્નાના रणाम आापतां भडावीरप्रभु हे छे - 'गोयमा! डे गौतम ! 'असुरिंदे असुरराया उड्ढ सव्त्रत्थोवं खेत्तं एक्केणं समएणं उप्पयइ' असुरेन्द्र असुररान भर शे! सभयभां आछामां मोछा क्षेत्र सुधी उर्ध्वगमन रे छे. तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ' ते मे सभयभां संभ्यात लाग प्रभाष क्षेत्रभां तिर्यगगमन पुरे छे, 'अहे संखेज्जे भागे गच्छ' भने अधोलोमा पशु संख्यात लागू प्रभाष क्षेत्र सुधी गभनरे छे. 'वज्जं जहा सक्कस्स तदेव - नवरं विसेसाहियं कायव्ं'
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