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अमेयचन्द्रिका टीका श.३ ३.२ सू. ११ शक्रचमरयोर्गतिस्वरूपनिरूपणम् ४७९ संख्येयान् भागान गच्छति, अधः संख्येयान् भागान् गच्छति, वज्रं यथा शक्रस्य तथैव, नवरम्-विशेषाधिकम् कर्तव्यम् • शक्रस्य भदन्त ! देवेन्द्रस्य, देवराजस्य अवपतनकालस्य च उत्पतनकालस्य च कतरें, कतरेभ्योऽल्पो वा, बहुको वा, तुल्यो वा' विशेषाधिको वा ? गौतम ! सर्वस्तोकः शक्रस्य देवेन्द्रस्य असुरराज चमर का एक समय में ऊंचे जाने का विषय-क्षेत्र सय से स्तोक-अल्प है । (तिरियं संखेजे भागे गच्छइ) तिरछे जाने का विपय-क्षेत्र एक समय में संख्यात भागप्रमाण अधिक है-अर्थात उर्ध्वविपय क्षेत्र की अपेक्षा तिरछे जाने का विषय-क्षेत्र संख्यात भागतक है। इसी तरह (अहे संखेज्जे भागे गच्छइ) एक समय में चमर का अधोगमन संबंधी विषय-क्षेत्र पहिले की अपेक्षा संख्यातभागतक हैअर्थात् संख्यातभाग अधिक है। (वनस्स जहा सक्कस्स तहेव, नवर विसेसाहियं कायव्वं) बन की गति का विपय-क्षेत्र शक्र की गति के विषय-क्षेत्र की तरह से जानना चाहिये परन्तु विशेपता यह है कि गति का विपय-क्षेत्र विशेपाधिक कहना चाहिये। (सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरपणो ओवयणकालस्स य उप्पयणकालस्स य कयरे कयरे हिंतो अप्पे वा पहुए वा, तुल्ले वा विसेसाहिए वा ?) हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्र के ऊंचे जाने का काल और नीचे जाने का काल इनमें कौन किससे अल्प है, कौन किससे बहुत है, कौन किससे २४ यभरनुं मे४ समयमा गमन ४२पार्नु क्षेत्र सौथी माछ. (तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ) तन मनना क्षेत्र ४२di ति२७ गमानतुं क्षेत्र सध्यात भार प्रमाण अधि: छ. (अहे संखेज्जे भागे गच्छइ) तनातिय गमनना क्षेत्र કરતાં અધોગમનનું ક્ષેત્ર સંખ્યાત ભાગ પ્રમાણ અધિક છે. એટલે કે ચમરેન્દ્ર એક સમયમાં જેટલે ઊંચે જઈ શકે છે તેનાથી અધિક અંતર સુધી તિરકસ ગમન કરી શકે છે. અને એક समयमा २ तिरछुगमन ४२छतनाथी मधिल अधागमन शश. (वज्जस्स जहा सकस्स तहेव, नवरं विसेसाहियं कायव्वं वन गतिविषय क्षेत्र शना गतिવિષયક ક્ષેત્ર પ્રમાણે જ સમજવું પણ તેમાં વિશેષતા એ છે કે ગતિવિષયક ક્ષેત્રમાં જે विशेषाधिता छ तेवी न. (सक्कस्स गं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो ओवयणकालस्स य उप्पयणकालस्स य कयरे कयरेहितो अप्पे चा वहुए चा, तुल्ले वा, विसेसाहिए वा) महन्त ! देवेन्द्र देवरा A81 मन som અને અધોગમન કાળની તુલના કરવામાં આવે તે તે બેમાંથી કયે કોના કરતાં જૂન છે, કયે કેના કરતા અધિક છે, કયે કેની બરાબર છે અને કયે કેના કરતાં . विशेषाधि छ ? (गोयमा!) 3 गौतम ! (सम्वत्योवे सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो