________________
४८२
creates
1
टीका- अथ गौतमः शक्रादि देवानामृध्यधस्तिर्यग्गमनविषये क्षेत्राबद्द त्वम् पृच्छति - 'सफारस णं मंते !' इत्यादि । ' णं भंते' शक्रस्य खलु भदन्त ' ' देविंदरस देवरणो' देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'उ, अहे, तिरियंच' ऊर्ध्वम् अधः, तिच 'गाविसस' गति विषयस्य क्षेत्रस्य मध्ये 'करे' फनरः की गतिविषयः 'कमरेदितो' कतरेभ्यः फलरस्मात् गतिविपयात् 'अप्पे'या' अल्पो वा न्यूनो वा वर्तते 'बहु चा' बहुकोमा 'तुल्लेवा' तुल्यो वा शा 'विसेसाहिए?' विशेषाधिको वा वर्तते ? शक्रस्यस्तिर्यग्गतिर्विषयेषु क्षेत्रेषु संख्यातगुने । (घमरस्स य उप्पयणकाले चञ्चस्स य ओवयणकाले एस दोपह चि तुल्ले विसेसाहिए) चमर का उत्पतनकाल और वज्रका अवपतन काल ये दोनों भी तुष्य हैं और विशेषाधिक हैं |
टीकार्थ -- गौतमस्वामी ने प्रभु से इस सूत्र द्वारा देवों के उर्ध्व, अधः एवं तिर्यग्गमन के विषय में क्षेत्र की अल्प बहुता की पृच्छा है-वे पृच्छा करते हैं- 'सक्कस्स णं भंते' इत्यादि । हे भदन्त ! 'देविंदस्स देवरणो सक्कस' देवेन्द्र देवराज शक को ' उ अहे तिरियं च गविसयस्स' उर्ध्व, अधः और तिर्यक् ये गति के विषयभूत जो क्षेत्र हैं उनके बीच में 'करे' गतिविषयक कौनसा क्षेत्र ' कयरेहितो' कौन से क्षेत्र 'अप्पे ' अल्प है, 'वहुए वा' कौन से बहुत है, 'तुल्ले वा' कौन सेतुल्य है 'विसेसाहिए वा' एवं कौन से विशेषाधिक है ? प्रश्नका ता त्पर्य ऐसा है कि शक्र ऊपर भी जाता है, नीचे अधोलोक में भी जाता है और तिर्यग असंख्यात द्वीप समुद्रों तक जाता है तो गौतम विसेसाहिए ) भरनो अध्वगमनमाण भने वनो अधोगमन प्राण पशु सभान અને વિશેષાધિક છે.
ટીકા—આ સૂત્રમાં ગૌતમ સ્વામી દેવાના ઉર્ધ્વ, અધે અને તિ ગગમનના વિષયમાં ક્ષેત્ર અને કાળની ન્યૂનતા તથા અધિકતા વિષે પ્રશ્નના પૂછ્યા છે અને મહાવીર પ્રભુએ તે પ્રખ્તાના જવામા આપ્યા છે.
प्रश्न- "देविंदस्स देवरण्णो सक्करस" हेवेन्द्र देवशन थम्नी “उडूं आहे ति रियं च गइविसयस्स " ॐ, अधो भने तिर्यग जति विषय ने क्षेत्रातेभांथी "कयरे" गति विषयङ यु क्षेत्र "कयरेर्हिता" या क्षेत्र ४२ "अप्पे " महप छे, “बहुए ना” ४यु क्षेत्र त्या क्षेत्रथी अधिक छे, 'तुल्ले वा' यु क्षेत्र या क्षेत्रना परार छे, “विसेसाहिए वा" भने भ्यु क्षेत्र होना रतां विशेषाधिः छे? या પ્રશ્નનું તાત્પર્યાં. નીચે પ્રમાણે છે- શક્રેન્દ્ર લેકમાં પણ જાય છે, અધેલેાકમાં પણ