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प्रमेयचन्द्रिका टी. श०३ उ. २. ९ शक्रस्य विचारादिनिरूपणम्
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यान्यं 'णीसाए' निश्रया आश्रित्य 'उड्ढ' ऊर्ध्वम् 'उप्पय' उत्पतति, 'जाबसोहम्मो कप्पो' यावत् सौधर्मः कल्पः, अर्थात् स चमरः अर्धदादित्रयं विहायान्याश्रयेण नैव कथमपि ऊर्ध्व सौधर्मकल्प पर्यन्तम् उत्पतितुमईतीति शक्रस्य मनसि संकल्पः समुत्पन्नः 'तं महादुखं खलु' तत् तस्मात् वज्रमक्षेपणद्वारा महादुःखं खलु भवेद 'तहारूवाणं' तथारूपाणां भूमण्डले विचरताम् 'अरिहंताणं' अर्हताम् 'भगवंताणं' भगवताम् ' अणगाराणं य' अनगारागाञ्च 'अच्चासायणाए' अत्याशातनया 'त्तिकट्टु' इति कृत्वा मनसि सम्भाव्य 'ओहि ' अवधि अवधिज्ञानम् अवधिज्ञानप्रयोगं कुरुते 'पउंजड़' प्रयुङ्क्ते ततः 'पजं जित्ता' मयुज्य - अवधिज्ञानोपयोगं कृत्वा 'ममं' माम् ' ओहिणा' अवधिना वा' अथवा छद्मस्थ तीर्थकरों के, अथवा 'भावि अप्पणी अणगारे वा' भावितात्मा अनगारों के बिना वह चमर अन्य दूसरों की निवासे यावत् सौधर्मकल्पतक उर्ध्वमें नहीं उड़ सकता है । यदि उर्ध्व में सौधर्मकल्पतक उड़ सकता है तो इन अर्हदादिकों की निश्रा से ही उड़ सकता है ऐसा शक्र के मनमें संकल्प हुआ - 'तं महादुक्खं खलु इस कारण मैंने जो चमर के प्रति वज्रका प्रक्षेपण किया है-चह मैंने ठीक नहीं किया है - इससे तो उल्टा मुझे ही यह बड़ा दुःख हुआ है क्यों कि इसके प्रक्षेपण द्वारा 'तहाख्वाण' तथारूपधारीभूमण्डलमें विचरण करने वाले 'अरिहंताणं' अरिहन्त भगवन्तों की और 'अणगाराणं' अनगारों की मुझसे 'अच्चा सायणाए' आशातना हुई है ' तिकटु' ऐसी मन में संभावना करके उसने 'ओहिं' अपने अवधिज्ञान का 'पउंजह' प्रयोग किया 'परंजित्ता' अवधिज्ञान का उपयोग करके 'मम' मुझे उसने 'ओहिणा' अपने अवधिज्ञान से 'आभोઆશ્રય લીધા વિના ચરેન્દ્ર સૌધ કલ્પ સુધી ઉંચે ઉડી શકવાને શક્તિમાન નથી’ અહ ́ત સ્માદિની નિશ્રાથી [આશ્રયથી] જ તે સૌધ કલ્પ સુધી ઉડી શકે છે. આ પ્રકારને વિચાર શક્રેન્દ્રના મનમાં ઉત્પન્ન થયા.
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अच्चासायणाए
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'तं महादुक्खां खलु ' त्यारे तेने भनभां लारे हुः ययु. तेने थ्यु } यभरना तर व ईडीने 'तहारुवाणं' तथा३यी धारी-लूम उसमां विश्ररएयु ४२नारा अरिहंताणं' अरिहंत भगवतोनी भने 'अणगारागं' गुगारानी ' भारा पती अशातना ४राई छे. 'त्तिकट्टु ' भनभां या प्रभारनी शभ्यतानो विशार * 'ओहि परंज' ते तेना अवधिज्ञाननो उपयोग यो 'परंजिता ' अवधिज्ञानने। उपयोग रीने तेथे 'मम' भने [महावीर अलुने] 'ओहिणा आभोएइ
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