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भगवतीको 'ग्गा' बल्गति कुर्दति, 'गनई' गर्नति-मेघवद शन्दकरोति 'इगहेसिभं करे।'
यपितं करोति घोटकर हेपणां करोति इस्पिगुलगुलाइभ फरेइ' इस्तिगुलगुलायितं करोति, हस्तित्व चीत्कारशन्दं करोति रहयणघणाइभं करेइ स्ययन घनायितं फरोति रथयन् पनयनशन्दापारयति 'पायदारगं फरेइ' पाददर्दरकं फरोति चरणेन भूमिमाफ्टपति 'भूमिचवेडयं दलड़ भूमिचपेटां ददाति भूमि कराभ्यामास्फोटपति सीरणादं नदई' सिंहनादनदति-सिंहनादं करोति 'उच्छोलेई' उच्छलति-अग्रतो मुखोचपेटां ददाति उत्फालनं करोति वा ऊर्ध्वमुत्पततीत्यर्थः 'पच्छोलेइ प्रच्छलति पृष्टतो मुखां चपेटां ददाति कधिःपतति वा तिवई त्रिपदी विपदिकाम् 'छिदई छिनत्ति प्रोटयति मल्लइय रङ्गभूमौ त्रिपदीच्छेदं करोति 'वामभु वाम भुजम् 'ऊसवेइ' उच्छ्रपति-ऊचे मसारयति 'दाहिणहत्यपयेसिणीए' हाथों को याहोको भुजाओं को ठोका 'पग्गइ' और फंदा-ऊपरकी ओर उछला 'गजई मेघ के समान उसने ध्वनि-गर्जना की । 'हयहेसियं करेह' घोडे की तरह वह हिनहिनाया 'हस्थिगुलगुलाइयं करह हस्ती के समान उसने चीत्कार किया अर्थात् हाथी के जैसा वह चिंघाड़ा 'रहघणघणाइयं करेह' रथ के समान घन घन शब्दका उसने उच्चारण किया। पायददरगं फरेह' चरण से भूमिको ताडित किया अर्थात्-दोनों पैरो को उसने जोर २से जमीन के ऊपर उठाकर पटका 'भूमिचवेडयं दलयई' हाथ से भूमि का आस्फालन किया 'सीहनाद नदइ' सिंहनाद किया अर्थात् शेर की तरह दहाडा अर्थात् गर्जा 'उच्छोलेह' ऊंचे उछला 'पच्छोलेइ' ऊँचे से नीचे गिरा 'तिपदी छिंदई' रंगभूमि में मल्लकी तरह उसने विपदिका का छेदन किया 'वामं भुयं ऊसवेह' वायें हाथको ऊपर पसारा 'दाहिणहत्यपदेसिणीए' दाहिने તેની બને ભુજાઓ પર થાપટે લગાવી;agી તે ઉપરની બાજુ ઉછળવા લાગે, 'गजई मेघना पी ना ४री, हय हेसियं करेइ त घोडानी भ एया, 'हत्थिगुलगुलाइयं करेइते थाना । यार ४२वा वायो 'रघणघणाइयं
होत! २५ वी पारी ४२ छ मेवी पारी ते ४२१॥ श्यो. पायदहरगं करेइ' ते मन्ने थी मीन ५२.५८४वा भांडया मिच. और इलयह तो तना डाथ भान ५२ ५.34 भांडया, 'सिंहनादं नई त सिडनावी ना ४N. 'उच्छोलेइ त य न्या. 'पच्छोलेड अयथा पायो तिपदी छिंदई भ म भूमिमा त्रिपीनु छैन ४२ छ तभ त त्रिपहनु छैन यु. 'वामं भूयं ऊसवेइते मा डायने अयोध्यो, दाहिणहत्यपदेसिणीए' भ! डायना नी भने : अंगुट्टणणय वि'