________________
३९९
प्रमेयचन्द्रिका टी. श. ३ उ. २ सू. ६ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रिया निरूपणम् सचमरः अनुरेन्द्रः, अनुरराजः, महर्द्धिकः खलु भोः । स शक्रो देवेन्द्रः देवराजः, अल्पर्द्धिकः खलु भोः । स चमरोऽसुरेन्दः, अगुरराजः, तद्गच्छामि देवानुमियाः ! शक्र देवेन्द्रं देवराजं स्वयमेव अत्याशातयितुम् ? इति कृत्वा उष्णः, उष्णीभूतो जातथापि अभवत् ततः स चमरोऽभुरेन्द्रः, असुरराज:अवधिं युक्तेः माम् अवधिना आभोगयति, आभोग्य अयम् एतद्रूप आ( एवं वयासी) इस प्रकार कहा - ( अण्णे खलु भो ! सक्के देविंदे देवराया, अण्णे खलु भो ! से चमरे अमृरिंदे असुरराया) हे देवो ! - देवेन्द्र देवराज शक्र दूसरा है और हे देवो ! असुरेन्द्र असुरराज चमर दूसरा है ( महड़िए खलु भो । से सक्के देविंदे देवराया, अपिडिए खलु भो ! से चमरे असुरिंदे असुररोया) हे देवो ! देवेन्द्र देवराज वह शक महाऋद्धिवाला है और हे देवो ! असुरेन्द्र असुरराज चमर दूसरा है (तं) तो ( देवाणुपिया) हे देवानुमियो ! मै (सयमेव) स्वयं ही (देविंद देवरायं सत्यं) उस देवेन्द्र देवराज शक्रको (अच्चासाइत्तए इच्छामि) उसकी शोभा से भ्रष्ट करने की चाहना कर रहा हूं ( तिकट्टु ) ऐसा कह कर वह चमर (उसिणे) बहुत गरम हुआक्रोध से भर गया - तथा (उसिन्भूए जाए याचि होत्था) अस्वाभाविक गरमी से युक्त हो गया । (तएणं से चमरें असुरिंदे असुरराया ओहिं पउंजड़) इसके बाद उस असुरेन्द्र असुरराज चमरने अपने अवधिज्ञान थयेला ते सामानि हेवाने आा प्रभावे ऽधुं -(अण्णे खलु भो ! सक्के देविंदे देवराया, उह्युं अण्णे खलु भो ! से चमरे असुरिंदे असुरराया) हे हेवानुप्रियो ! हेवेन्द्र देवरान श जिन्न छे, रमने असुरेन्द्र असुररान यमर भिन्न छे. (महिडिए खलु भो ! से सक्के देविंदे देवराया, अप्पिडिए खलु भो ! से चमरे असुरिंदे असुरराया !) हे देवे ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્ર મહર્દિક છે અને દેવેન્દ્ર દેવરાજ ચમર તેનાથી ઓછી ઋદ્ધિવાળા છે. કહેવાના ભાવાય એ છે કે દેવેન્દ્ર દેવરાજ શુક્ર મારા કરતાં વધારે ઋદ્ધિવાળા છે, ते वात हुँ भनु छ. (तं) छतां पशु (देवाणुप्पिया) डे हेवानुप्रियो ! (सयमेव) डु पोते (देविंद देवरायं सक्कं) देवेन्द्र देवारा श४ने (अच्चासोइत्तर इच्छामि ) तेमनी शोभाथी भ्रष्ट ४२वा छु . ( तिकडु) से प्रमा] अडीने (उसिणे) यभरेन्द्र धथे। गरभ थन गयो–!!पायमान थयो (उसिणन्भूए जाए यात्रि होत्या) तथा अस्वाभावि गरभीथी युक्त थयो- तेन। अयानि अवसित थयो (तरणं से चमरे असुरिंदे अनुरराये ओहिं पउंजइ) त्यार माह ते असुरेन्द्र मसुरशन्न यभरे अवधिज्ञानने। उपयोग
४