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प्रमेयचन्द्रिका टी. श.३ उ.२ स.७ चमरेन्द्रस्योत्पावक्रियानिरूपणम् ४११ एकम् अद्वितीयम् परिघरत्नमादाय ऊचे विाय उत्पतितः, क्षोभयन् चैव अधोलोकम् , कम्पयंश्च मेदिनीतलम् , आर्पयन्निव तिर्यग्लोकम् , स्फोटयन्नित्र अम्बरतलम् , कुत्रचित् गजेन् , कुत्रचित् विद्युत्यमानः, कुत्रचिद्वर्षा वपन् , कुत्रचिदरजउद्घातं भकुर्वन् , कुत्रचित् तमस्कायं प्रकुर्वन , वानव्यन्तरान् देवान हाथकी प्रदेशिनी अंगुली से और अंगुलके नख से अपने मुखकी विडम्बना करने लगा । (महया महया सद्देण कलकलग्यं करेड्) बड़े जोर२से कलकल शब्द करने लगा (एगे अबीए फलिहरयणमायाय) इस तरह क्रोधाग्नि से जलता भुनता हुआ वह चमर अकेला हीकिसी दूसरे सहायक को लिये विना ही अपने परिघरत्नको लेकर (उड्ड वेहासं उप्पइए) मानो पृथ्वीको क्षुभित करताहुआ ऊपर आकाशमें उड गया (खोभंते चेव अहोलोय, कंपेमाणे च मेहणीयलं) जब वह ऊपरकी
ओर आकाशमें उडा-तो उस समय ऐसा मालूम होने लगा कि मानों वह अधोलोकको क्षुभित मा कर रहा है, मेदिनीतलको वापिस सा कर रहा है । (आकडतेय तिरियलोयं) तिर्यग् लोकको खंच सा रहा हैं (फोडे माणेव अंबरतलं अम्बर तलको मानों फोड रहा है (कथइ गज्जंते, विज्जुयायंते) आकाशमें कहीं पर वह गर्जा, कहीं पर विजुलीकी तरह चमका (कत्थइ वास वासमोणे) कहीं पर उसने वर्षाको वरसाया (कत्थइ रघुग्घायं पकरेमाणे) कहीं पर धूलि समूहको चरसाया (फत्था तमु. दृणहेण य वितिरिच्छमुहं विवेइ) भ! डायनी तनाथ भने महाना नमथी १ तेना भुमना [43मना ४२वा सा-यI. (महया महया सणि कलकलवं करेड ) महुये सवार asalsa x२वा साया. (एगे अवीए फलिहरयणमाया य) मा शत धामिने वश थय ते अमरेन्द्र साधन पy પિતાની સાથે લીધા વિના પિતાના પરિઘવન નામના શઅને ધારણ કરીને (૩ वेहासं उप्पइए) ०५२ मा et al. (खोभते चेव अहोलयं, कंपेमाणे च मेइणीयल) 0 sal ते अघासाभi भन्यापी घा,
तने पानी सीधु, (आकड़ते य तिरियलोयं) तिवाने one 3 तनी त२३ मेथी दीपा, (फोडेमाणेच अंबरतलं) तेथे मायने ही नाभ्यु, (कत्यइ गजंते, कत्यइ विज्जुयायते) मामा व्या व न्यो,
यात विरजीना भयभयो, (कत्थइ वासं वासमाणे) iss स्थणे धूजना १२सा १२साव्या, (कत्थर तमकायं पकरेमाणे) मन ३४ स्थणता