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भगवतीस्त्रे पुरन्दरस्तम् 'जाव-दसदिसाओ' यायत दशदिशाः 'उन्नोवेमाणं' उद्योतयन्तम् स्वतेजसा प्रकाशयन्तम् यावत्पदेन 'दाहिण? लोगाहियई, बत्तीसबिमाणसय. सहस्साडिवई, एरावणवाहणं, मुरिंद, अश्यंबस्वत्यधरं, आलइभमालमउडं, नवहेमचारुचिनचंचलकुंडलविलिहिजमाणगडं' इत्यादि 'दिव्येण तेएणं दिगाए ठेसाए' इत्यन्तम् दक्षिणाधलोकाधिपतिम्, द्वात्रिंशद् विमानशतसहस्राधिपतिम् द्वात्रिंशल्लक्षविमानस्वामिनम् , ऐरावणवाहनम् , सुरेन्द्रम्, अरजोऽम्बरवस्त्र विनाश कर देता है 'जाव दस दिसाओ उलोवेमाणं यावत् जो ऊपर, नीचे एवं पूर्वादि चार दिशाओं एवं इनके चारों कोणोंको अपने तेज से प्रकाशित करता रहता है, 'पभासेमाणं प्रभायुक्त करता रहता है. ऐसे इन्द्र शक्रको उसने 'सोहम्मे कप्पे' सौधर्म कल्पमें 'सोहम्मवडिसए विमाणे' सौधर्मावतंसक विमान में 'सक्कंसि सीहासणंसि' शक्र नामक सिंहासन पर 'जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणं पासह' यावत् दिव्य भोग भोगते देखा 'जाच दसदिसाओ' में जो यावत् पद आया हैं-उससे 'दाहिणलोगाहिवई, बत्तीसविमाणसयसहस्साहिवई, एरावणवाहणं, सुरिंदं अरयंबरवत्थधरं, आलइयमालमउडं नवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिजमाणगंडं, इत्यादि से लेकर 'दिव्य तेजसा दिव्यया लेश्यया' यहां तकका पाठ संग्रह हुआ है। इन पदों का अर्थ इस प्रकार से है-शक दक्षिणाधलोक का अधिपति है-बत्तीस लाख विमानोका स्वामी है, इसका वाहन ऐरावत हाथी है देवोंका यह सर्वोपरि शासक है, (नारा ४२ ना२) छ. 'जाव दसदिसाओ उज्जोवेमाणं' ने पूर्व पश्चिम तर, ह . ઈશાન, અગ્નિ, નેત્રાત્ય, વાયવ્ય, ઉપરની અને નીચેની એ દસે દિશાઓને પિતાના તેજથી
शित 'पभासेभाणे' मन. असाथी युत ४॥ २घो छ, सवा शहेन्द्रन तेणे (यभरेन्द्र) 'सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिसए विमाणे त्या' सौधमयमां, सौधावत विमानमा २ नामना सिंहासन ५२ 'जाव दियाई भोगभोगाई भुजमाणं पासइ' हिव्य लगानी पसेप रते। लयो. 'जाव दसदिसाओ' मा 'जाव' ५६ ५५रायु छ तेथी नीयन। सूत्रपा8 रायो छ-'दाहिए लोगाहिवई, बत्तीस विमाणसयसहस्साहिवई, एरावणवाहणं, सुरिंदं अरयंवरवत्थधर, आलइयमालमउडं नवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगंडं' था सान 'दिव्य तेजसा दिव्यया ठेश्यया' सुधाता पाठ उप रायो छे. मा पहोना अर्थ नीय प्रभाव छे
ગાકનો અધિપતિ છે, તે ૩૨ લાખ વિમાનને સ્વામી છે, ઐરાવત હાથી તેનું વાહન છે, દેવાના તે સવપરિ શાસક છે, આકાશના જેવાં શ્રેષ્ઠ અને