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भगवतीय
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३५६ तन्ति 'जोर-मोहम्मो फप्पो' पायत् सौधर्मः कल्प:- सौधर्मकल्पपर्यन्तं सर्वेऽपि अमुरकुमारा उत्पतन्ति किम् ? यावत्पदेन उपयुक्तम् संग्रामाम् । मगवान, उत्तरयति-'गोयमा ! णो इणहे समद्दे' इत्यादि । हे गौतम ! नायमर्थः समर्थ भवत्कयनं न युक्तम् अर्थात् सर्वे देवा अमरकुमारा ऊर्च नोत्पतितुमईन्ति अपितु 'महिटियाण' महर्दिका अनिशदिशालिनः खलु अमुरकुमारा देवाः 'उई ऊर्ध्वम् 'उप्पयंति' उत्पतन्ति 'नाव-सोहम्मो कप्पो' यावत् सौधर्मः कल्पः, सोधर्मकल्पपर्यन्तमूर्ध्वमुत्पतन्ति । गौतमः पृच्छति 'एस विणं भंते ! इत्यादि । हे भगवन् ! एपोऽपि खल प्रसिद्धः 'चमरे' चमरः 'अमुरिदे! असुरेन्द्रः असरकुमारराया' अमुरकुमाररानः 'उर्दु' उर्ध्वम् 'उप्पइअपुन्नि' उत्पतितपूर्वः पूर्व कदाचित् उत्पतितः 'नाव-सोहम्मो कप्पो' यावत् सौधर्मः जाते है-'सब्वे विणं भंते ! हे भदन्त ! समस्त ही 'असुरकुमारा' देवा' असुरकुमार देव 'उड्ढे उप्पयंति' _लोक में जाते हैं 'जाव सोहम्मो कप्पो' यावत् जहाँ तक सोधमेकल्प है यहां तक । यहां पर भी यावत् पदसे उपर्युक्त समस्त कथन ग्रहण कर लेना चाहिये। इस प्रश्नका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं 'णो इणठे समढे' यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात समस्त ही असुरकुमार यावत्सौधर्मकल्प तक उत्रलोक में जाते है यह बात नहीं है किन्तु 'महिडियाणं असुरकुमारा देवा जाव सोहम्मो कप्पो उ8 उप्परांति' महद्धिक असुरकुमार देव ही यावत् सौधर्मकल्पतक उर्ध्वलोकमें जाते है। अब गौतम स्वामी प्रभु से यह पूछते है कि क्या कभी चमर भी उर्वलोकमें यावत्सौधर्मकल्पतक गया है ?---'चमरे असुरिंदे असु.. रकुमारराया उट्ट उप्पइयपुचि जाव सोहम्मो कप्पो' हे भदन्त । "सब्चे विणं भंते !" असुरकुमारा देवा" से 11 स मधुसुमार वा "उई उप्पयंति" Garathi "जार सोहम्मो कप्पो" सोधभ qad पन्त
छ ? मही पy "जा" ५४थी उपर्युत समस्त अयन अडश ४२५.
उत्तर-"जो इणहे सम?" 11 अथ समर्थ नथी. मया असुश्शुमार देव सौध ४६५ पय-
तता नथी. परंतु " महिड्डूियाणं असुरकुमारा देवा जात्र सोहम्मो कप्पो उथ उप्पयंति" हा मसुरशुभार वो Graswi सीपभદેવલોક પર્યત જાય છે.
xtचमरे अमरिंदे अमुरकुमारराया उद उप्पइयपुचि नाव सोहम्मो कप्पो ?" महन्त ! मसुरेन्द्र मसुरसुभा२०४ यभर की
मां सोच