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मेयचन्द्रिका टी. श. ३ उ.२ सू. ३ चमरेन्द्रस्य पूर्वभवादि निरूपणम् ३६५ डेणं समयेणं' तस्मिन् समये इहैव अस्मिन्नेव जम्बूद्वीपे द्वीपे मध्यजम्बूद्वीपे मारहे' भारते 'वासे' वर्षे भरतक्षेत्रे 'विधगिरिपायमूळे' विन्ध्यगिरि आदमूले बिन्ध्यपर्वतसमीपे 'वेभेले नाम वेभेलो नाम 'संनिवेसे' सन्निवेशः मागतसार्थवाहादि निवासस्थानम् ‘होत्या' आसीत् 'वण्णओं' वर्णकः लिङ्ग ज्यत्ययेन चम्पा नगरीवत् अस्यापि वर्णनं बोध्यम् 'तस्थ णं' तत्र खलु वेभेले निवेशे 'पूरणे नाम' पूरणो नाम 'गाहावई' गाथापतिः 'परिवसइ' परिवसउस समयमें 'इहेव जंवूदीवे दीवे इसी जंबूदीप नामके प्रधमद्वीप में जो कि समस्त द्वीपोंके बिलकुल मध्य में है 'भारहे वासे' एक भारतवर्ष नामका क्षेत्र है उसमें 'विंझगिरिपायमूले' एक विंध्य पर्वत है-उस पर्वत के पाद मूलमें तलहटी में (वेभेले नामं संनिवेसे होत्या) वेभेल नामका एक संनिवेश-समागत सार्थवाह आदिका निवासस्थान था 'वष्णओ' इसका वर्णन औपपातिक सूत्र में वर्णित चंपा. नगरीकी तरह जानना चाहिये। चंपानगरीका वर्णन जो वहां लिखा है वह वर्णन चेभेल संनिवेशके साथ लगा लेना चाहिये । क्यों कि चंपानगरी के वर्णन में जितने भी पद वहाँ आये हैं वे सब विशेष्यके अनुसार ही स्त्रीलिंग में आये हैं। यहां जो वर्णन है वह विशेष्यरूप वेभेल संनिवेश को पुल्लिंग होनेसे वे सय विशेपण पुलिंगरूप से ही ग्रहण किये जायेगे। इसी कारण टीकाकारने "लिंगव्यत्येन चम्पानगरीवत् अस्यापि वर्णनं बोध्यम्" ऐसा कहा है। 'तत्थ णं वेभेल संनिवेशमें 'पूरणे नामं गाहावई परिवसई' पूरण इस तेणे मन त समये "इहेव जंयूदीवे दीवे" दीप नाम पडदा दायमा "भारदेवासे" भारतवर्ष नामे मे क्षेत्र छे. "विंझगिरि पायमूले" विध्यायल नाभन त छ. ते पतनी तीमा "वेभेले नामं संनिवेसे होत्या" aaa નામનું એક સંનિવેશ હતું. જ્યાં સેદાગની વસ્તી વધુ હોય એવા નગરને સંનિવેશ
छे. "वण्णा " भोपाति: सूत्रमा २ नगरीतुं वन ध्यु छ मेjan તેનું વર્ણન સમજવું. “ચંપાનગરી શબ્દ નારી જાતિને હેવાથી તેનાં વિષ વિશેષ્ય જેવાં જ એટલે કે નારી જાતિનાં છે. પણ બેભેલ નગર નર જાતિમાં હોવાથી તેના વિશેષણે નરજાતિનાં સમજવાબેભેલનું વર્ણન કરતી વખતે એ વાત ધ્યાનમાં રાખવી. मेवाती नायना३४२द्वारा शछ-'लिंगव्यत्ययेन चम्पानगरीवत् अस्यापि वर्णनं बोध्यं' "तत्थ णं बेभेले संनिवेसे" ते मे नाम "पूरणे नामंगाहावई