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भगवतीले रोमि:-सह विहाँ समर्था न सन्ति 'सेणं' अथ खल किन्तु 'तो' ततः तस्मात् सौधर्मकल्पात् 'पडिनिवत्तंति' प्रविनिवर्तन्ते परावर्तन्ते 'तओ पडिनियसित्ता' ततःमतिनित्य 'इहागच्छंति' अत्र निजस्थाने आगच्छन्ति 'जइणं' यदि खलु कदाचित् 'ताओ अच्छराओ' ता:- अप्सरस: 'आढायंति' आदियन्ते समादरं कुर्वन्ति ' परियागंति' परिजानन्ति तान् स्वामित्वेनानीकुर्वन्ति तदा 'पभृणं' मभवः खलु-समर्थाः किल भवन्ति ते अमुरकुमारा देवाः 'ताहि अच्छराहिं ' ताभिः अप्सरोभिः 'सद्धिं ' सार्थम् 'दिबाई दिव्यान् भोगने के लिये समर्थ नहीं होते है ‘से णं' किन्तु 'तो' उस सौ. धर्मकल्प से जब 'पडिनियत्तति' वे लौटते है और 'पडिनियत्तित्ता' लौटकर 'इहमागच्छति' अपने स्थान पर आने लगते है 'जहणं ताओ तो वे 'अच्छाओ' अप्सराएँ यदि कदाचित् 'आढायंति' उनका आदर सत्कार करं, 'परियाणंति' और उन्हें अपने स्वामीरूप से स्वीकार करें 'ते असुरकुमारा देवा' तब वे असुरकुमार देव 'ताहिं अच्छराहिं सद्धि उन वैमानिक देवेंकी अङ्गनाओंके साथ दिवाई भोगभोगाई भुजमाणा विहरित्तए पभू णं' दिव्य भोगने योग्य भोगोको भोगनेके लिये समर्थ हो सकते है । हठसे जबर्दस्तीसे नहीं । 'अहणं' और यदि 'ताओ अच्छराओ' वे अप्सराएँ 'नो आढायति' उन्हें आदरकी दृष्टिसे नहीं देखें 'णो परियाणति ' अपने स्वामीरूप से उन्हें नहीं स्वीकार करें तो 'ते' वे 'असुरकुमारा देवा' असुरकुमार देव 'ताहिं अच्छराहिं सद्धि' उन अप्सराओं के साथ 'दिव्वाई' दिव्य 'भोगभोगाई नया, "से" पY " तओ पडिनियत्तति " न्यारे तेमा त सौषम माथा पाछता डाय छे. "पडिनियत्तिता इहमागच्छति" म पाछ शन पाताने स्थाने तi डाय छे त्यारे "जइणं ताओ अच्छराओ आढायंति"न्ने त - ना। तमना मा६२ ४२, "परियाणंति" मने तमना पोताना पाभी इथे स्वार रेत ते असरकुमार देवात मसुरशुमार वो "ताहि अच्छराहि सद्धि"
मानि वानी मसरामी साथे " दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरिचिए प हिल्य, सोगा योग्य सोगानी Byan ४२वान समर्थ मनी छे year समयी तमा तेभरी शता नथी. "अहणं ताओ अच्छराओ" aa मसरामा "नो आढायंति" तेभने मारी या नहीं, "नो परियति भन भने स्वामी तरी वीरे नहात ते असरकमारः देवा" ते मसुरभार देवो "ताहि अच्छराहिं सद्धि" ते मसरामानी साय "दिव्वाई"