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भगवती लघुस्वकानि रस्नानि यथोचितानि भल्पमाराणि बहुमृत्यरत्नानि 'गडाय' सी. स्वा 'आमाए' आगना 'एगंतमत' एकान्तम्भन्तम् अत्यन्तनिर्जनमदेशे 'मनका मंति' अपामन्ति गछन्ति। गौतमः पुनःपृच्छति - 'अत्यिणं मंते। इत्यादि । हे भगवन् ! 'तेसि देवाणं' तेपो देवानाम् वैमानिकदेवानाम् 'अहा लहुसगाई यथालधुस्त्रकोनि हस्वरूपाणि रयणाई रत्नानि 'अत्यि' सन्ति किम् । भगवानाइता , अत्यि' । गौतमः पृच्छति-से कहमिआणि पकरें ति। भय हे भगवन् ! यदा ते अमरा वैमानिकानां ग्लानि चौरयन्ति तदा किम् -इदानी रत्नग्रहणानन्तरमेकान्तापक्रमणकाले वैमानिकाः प्रकुर्वन्ति कथं तान् दण्डयन्ति निगृहन्ति था, तदर्य या उपायं समाचरन्ति ? भगवानाह'अहालहुसगाई यथोचित अल्पभार घाले यमृत्य 'रयणाई उनके रत्नोको गहाय' लेकर 'आभाए' अपने आप 'एगंतमंत' एकान्त निर्जन-अन्त प्रदेशमें 'अवकामंति' चले जाते हैं-भाग जाते है ! अघ गौतम भगवान से पुनः पूछते हैं 'अत्यि णं भंते । हे भदन्त । 'तेसिं देवाणं' उन चैमानिक देवोंके पास 'अहालसगाई' यथोचित लघुरूपवाले यहुमूल्य 'रयणाई' रत्न 'अत्यि' होते हैं क्या? इसक उत्तर में प्रभु कहते हैं 'हता अरिध हां गोतम! उन वैमानिक आत्म रक्षक देवों के पास यथोचित लघुरूप वाले घरमूल्य रत्न हात ह। 'से कहमियाणि पकरेंति' हे भगवन् ! जय वे असुरकुमार देव वेमा निक देवांके रत्नोंको चुराते है और धुराकर एकान्त स्थानमें भाग जाते है, उस समय वैमानिक क्या करते है? क्या उन्हें दण्ड देत है या उनका निग्रह करते है ? वे कौन सा उपाय करते है ? इस "अहालहसगाई। भने यथायित, masi aorani मनामह भूयवान रयणाई रत्नान गहाय" 615 ने 'आभाए' पातानी नत " पगंतमंत" 310. मेान्त (
निन) प्रदेशमा “अवकामंति" all aru छे. वे गौतम कामी महापार प्रभुने प्रश्न पूछे छ-"तेसिं देवाण" ते भानि वो पासे "अहालहुसगाई रयणाई अस्थि ?" यथायित, easi नना, मभूत्य. २.त। जय छ ।
धि , सपश्य साय छे. ".से कहमियाणि पकरेंति" atra “જ્યારે તે અસુરકુમાર દે વૈમાનિક દેનાં રત્નો ચારીને એકાંત સ્થાનમાં ભાગ કાય છે ત્યારે વૈમાનિકે શું કરે છે તે તેમને શિક્ષા કરે છે કે તેમની પાસેથી તે
ना मेणवी छे? तम्मा 26पाय *२.छे? . .