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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३. उ. २०१ भगवत्समवसरणम् चमरनिरूपणश्च ३२७ इत्यादि । 'तेणे काळेणं' तस्मिन् काले 'तेणं समएणं' तस्मिन् समये खल्लु 'रायगिहे नाम नयरे होत्या' राजगृहं नाम नगरमासीत् 'जाव-परिसा पज्जुरासई' यावत् पर्पत् पर्युपास्ते, यावत्पदेन भगवतः समवसरणपरिपदागमनधर्मश्रवणादिकं संग्राह्यम् , 'ते कालेणं तेणं समएणं' तस्मिन् काले, स्मिन् समये खलु समवसरणसमये एव 'चमरे अमरिंदे असुरराया' चमरः भसुरेन्द्रः, असुरराजः 'चमरचंचाए रायहाणीए' चमरचश्चायाः राजधान्याः 'मुहम्माए सभाए' सुधर्मायाः सभायाः 'चमरंसि सीहासणंसि' चमरे चमरकरने के लिये और चमरेन्द्र के उत्पात का निरूपण करने के लिये शास्त्रकार इस प्रकरण का कथन करते हैं
तेणं कालेणं तेणं समएणं' इत्यादि । 'तेणं कालेणं तेणं समएणं उस काल और उस समय में 'रायगिहे नाम नयरे होत्था' राज.. गृह नामका नगर था। 'जाव परिसा पज्जुवासइ' यावत् परिपदा ने पर्युपासना की इस पाठ को संगत करने के लिये यहां यावत् शब्द से 'प्रभु महावीर का राजगृह नगर में पधारना, प्रभु का आगमन सुनकर वहां की जनता का भगवान के समीप धर्मोपदेश सुनने के लिये जाना इत्यादिक पूर्व में जैसा पाठ कहा गया हैवह सब पाठ यहां ग्रहण कर लेना चाहिये। 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' उसकाल और उस समय में भगवान के पधारने के समय में ही 'असुरिंदे असुरराया चमरे' असुरेन्द्र असुरराज चमरने जो कि चमरचंचा नामकी राजधानी का अधिपति था, सुधर्मा नामकी जिसकी सभा थी और जो उस समय अपने चमर नामके सिंहा૨ ના ઉત્પાતનું નિરૂપણ સૂત્રકાર આ બીજા ઉદેશકમાં કરે છે બીજા ઉદ્દેશકનું પહેલું सूत्र "तेणं कालेणं तेणं समएणं" त्यादि छे ते आणे भने ते समय नामे ना तु. "जाव परिसा पज्जवासह" मा सूत्रमा मावता यावत्' [जार ५४थी नीयन सूत्रपा अडए ४२व महापार प्रभुनु २४ नगरमा આગમન ત્યાંના લેકેનું મહાવીર પ્રભુનો ધર્મોપદેશ સાંભળવા માટે ગમનદણ નમસ્કાર કરીને ધર્મો પદેશ સાંભળીને પરિષદનું વિસર્જન.” ઇત્યાદિ समस्त थन माग भुराम सभा. "तेणं कालेणं तेणं समएणं" ते जे अने ते समये-भगवान राम नगरमा मागमन थयु त्यारे "अमुरिदे असुरराया चमरे" मसुरेन्द्र, असु२२।यभर, पातानी यमस्य या नामानी पानामां, सुषमा