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प्रमेयचनिकोटीका श.३. उ.१ ईशानेन्द्रम्य देवदर्गादिप्राप्तिकारणनिरूपणम् १९६ इति पूर्वणान्वयः 'तिकट' इतिकस्वा उत्तमपेण अभिना विभाग पगं रांपेदे।' एवं संरक्षते-विचारपति 'संपत्तिा गंप्रेक्षण विगार्ग पोदिने गमोनिn. मानुसारं ताम्रलिप्तो दीक्षां गृहीतवान उनि प्रतिपादगि-'ग' फरणे ममास
पापभायाप' मादप्मभानायाम् गंगानमभागागा मियाम् 'जारत याचन ज्वलति यावन सूदियो भवमि नायन ग्गा दारुमग प्रसिप्रहर पात्रविशेष करीति निर्मापति निर्माण विपुला समन-पान-वाचासायम् उपकारयति, विपुलम् अमनपान-बाधा गांधम् उपमार्ग ततः भाव-हाए' स्नातः 'कगयलियम्' कायलियर्मा-कृतवायसादिक्ष्याम स्थान से उतरकर अपने आप ही दाममय पात्र लेकर ताम्रलिप्ती
.म जाऊगा और यहां पर उच, नीच, मध्यम गृहों में अनेक परा स भिक्षाप्राप्ति के निमित चर्या फलंगा, उस समय में सिर्फ भातमात्र ही भिक्षा में लंगा दाल शाया आदि पदार्थ नहीं। उसे लकर शुद्ध निर्दीप गरमजाल से अधिराजल से उन्हें २१ पार घाऊगा बाद में उन्हें आहार में रंगा । ति फर एवं संपेहेह' इस मकार उसने विचार किया 'सपेटिना' मा विचार फरफे 'पाल पा उपभायाए जाव जलते' उसकी रजनी प्रभातप्राय हो गई अर्थात्भातःकाल हो गया और यावत् सूर्यका उदय हो गया तब 'दारुमयं पाडग्गहियं उसने दाममय पात्रोको 'करेइ' पनवाया 'करित्ता' धनधा करके फिर उसने 'चिउलं असणपाणखाइमं साइम' विपुलमात्रामें अशन पान खाद्य और स्वाध चार प्रकारका आहार रंधवाया 'उवक्खडावेत्ता' चारों प्रकारका आहार रंधवा करके 'ती पच्छा' बाद પિતાના હાથમાં જ કાષ્ઠનિમિત પાત્રો લઈને તામ્રલિપ્તી નગરીમાં ભિક્ષા પ્રાપ્તિ માટે ભ્રમણ કરીશ. ત્યાં નીચ, ઉચ્ચ અને મધ્યમ ગૃહ સમુદાયમાં ફરીને ફકત શુદ્ધ ભાત જ વહારી લાવીશ–બીજું કોઈ પણ પદાર્થ વહેરીશ નેહીં. તે શુદ્ધ ભાતને નિરી ગરમ પાણીથી અચિત્ત જળથી ૨૧ વાર ઇશ. ત્યાર બાદ તે ભાતને મારા આહા२मा उपयोग शश. "ति कटु संपेहेई" तेभर से आने स४८५ च्या. "संहिता" मे। स५ ४शन "कल्लं पाउप्पभाए जाव जलते" न्यारे रात्रि ५श यई भने प्रात: थयो भने सूर्य तन तथा प्रशा साया त्या२ "दारु. मयं पडिग्गहियं" तभने ४४न पात्रो "करेइ " मनावराव्या. “करित्ता" पात्रो मनारायाने " विउलं असणपाणखाइमं साइमं" तेभए मशन, पान, माध भने स्वाध से यारे प्रा२ना भासा मोटा प्रभाशुभा २० वरखडावेचा"