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न. टी. श.३. उ.१२.२२ वलिचंचाराजधानिस्थदेवादिपरिस्थितिनिरूपणम् २३५ पान्यधिपतित्वार्थ संकल्पं कुरुत 'ठिइपकप्पं पकरेह' स्थितिप्रकल्पं प्रकुस्तस्थितौ पलिचश्चाराजधानीविषयकावस्थाने प्रकल्प: संकल्पो विचारः इति स्थितिप्रकल्पः, तं प्रकुरुत चिन्तयत ।।
'तएणं' ततः बलिचञ्चाराजधान्यधिपतित्वाय स्वविचारस्थिरीकरणानन्तरम् 'तुम्भे' यूयं 'कालमासे कालं किच्चा' कालमासे कालावसरे कालं कृत्वा चलिचंचा रायहाणीए' वलिचञ्चाराजधान्याम् 'उववजिस्सह उत्पत्स्यथ 'तएणं' तत उत्पत्यनन्तरम् 'तुम्भे' यूयम् 'अम्हं' अस्माकम् इन्द्रा भविष्यथ तत इन्द्रभवनानन्तरम् 'अम्हेहि ' अस्माभिः 'सद्धि' सार्धम् दिव्यान भोगभोगान् भुञ्जाना विहरिष्यथ ॥ मू० २२ ॥ विचार करो। 'सुमरह अच्छी तरह से उसका स्मरण करो। 'अट्ट बंधह में निश्चय करो। 'निदानं पकरेह' मैं बलिांचा राजधानी का इन्द्रपद पाऊँ ऐसा आप निदान करो। 'ठिइपकप्पं पकरेह स्थिति प्रकल्पकरो- घलिचंचा राजधानी में उत्पन्न होने का निश्चय करो, 'तएणं' बलिचंचा राजधाना के अधिपतित्व पद की प्राप्ति के निमित्त
आपका विचार जो स्थिर हो जायगा तो 'तुम्भे' आप 'कालमासे' काल अवसर में 'कालं किच्चा' काल करके 'लिच्चारायहाणीए' बालचंचा राजधानी में 'उववजिस्सह उत्पन्न हो जाओगे । 'तएणं' फिर इसके बाद 'तुम्भे' आप 'अम्हं' हमारे 'इंदा भविस्सह इन्द्रबन जाओगे । 'तएणं' इन्द्र होजाने के बाद फिर 'अम्हेहिं सद्धि' हम. लोगों के साथ 'दिव्वाई भोगभोगाई दिव्य काम भोगों को 'भुंजमाणा विहरिस्सह' भोगते रहोगे ॥ सू० २२ ॥ "परिजाणह" ते भाट भनमा २ विया२ ४, "समर सारी शत ततुं भर ४२। " अ पंधह, तनी प्रास्त भाट स४६५ ४३१, " निदानं पकरेह" मा५ मे नियाY जांधी मापन मलिन्य याना छन्द्रन ५६ भणे. " ठिइपकप्पं पकरेह" मा५ स्थिति ६५ ४-मसिया पानीमा Bur वान। निश्चय २१. "तएण" ॥ प्रभार ४२वाथी-मसिययाना - मनवार्नु निया ४२पाथी (नहान मांधाथी) "तम्भे" सा५ "कालमासे" पाभवानी मस२ माथे त्यारे "कालं किच्चा" आशन "बलिचंचा रायहाणीए" लिया २४ानामा "उववज्जिस्सह" त्पन्न यशी. "तपणं, त्यांपन्न थधने " तुम्मे." माप "अम्ह इंदामविस्सहममा ४न्द्र मना. "तएणं अम्हेहिं सद्धिं दिवाई भोग. भोगाइ भुंजमाणा विहरिसाह, सभा। धन्द्र मनीन आ५ समारी साय ०५ કમિભાગે જોગવશે. એ સૂ, ૨૨ છે