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म. टीका. श. ३ उ. १ सू. २९ सनत्कुमारस्य भवसिध्यादिमश्नस्वरूपनिरूपणम्' ३०३ पालयति इति आराधकः बोधिपालकः ९, 'विराहिए' विराधको वा-बोध्यपाएक: १०, 'चरमे' चरमः - अन्तिमः एक एव भवो यस्य स तथा ११, 'अनरमे' अचरमो वा तद्विपरीतः अनेकभवः किम् १२, 1
भगवानाह - 'गोयमा ! सणकुमारे देविंदे देवराया' । हे गौतम ! सनत्कुमारो देवेन्द्रो देवराजः 'भवसिद्धिए' भवसिद्धिकः एव, नो 'अभवसिद्धिए' अभवसिद्धिकः, एवं ' सम्मदिट्टी' सम्यगृहष्टिरेव नो मिध्यादृष्टिः, तथा 'परितसंसारए' परीतसंसारक एवं नो 'अनंतसंसारत' अनन्तसंसारकः, एवं 'सुलभ
"
ए' आराधक ९ और जो बोधिका पालन नहीं करता है वह 'विराहुए विराधक कहा गया हैं १० । सनत्कुमार आराधक है । कि विराधक है । जिसका एक ही भव बाकी होता है वह 'चरिमे' चरम कहा गया है- ११ इससे विपरीत अनेक भववाला जीव अचरम होता है १२ ॥ सनत्कुमार एक ही मनुष्य का भव प्राप्त करके मोक्षजायंगे या इससे विपरीत अनेक भवों के बाद मोक्ष जायंगे । इस प्रकार से ये ६ प्रश्न युगल सनत्कुमार के विषय में गौतम ने प्रभु से पूछे हैं। इनका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि- 'गोधमा । ' 'सणकुमारे देविंदे देवराया' देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार 'भवसिद्धिए ' भवसिद्धिक ही हैं 'नो अभवसिद्धिए' अभवसिद्धिक नहीं । इन्द्र भव की समाप्ति के बाद मनुष्यभव प्राप्त कर वह उसीभव से मोक्ष प्राप्त करेंगे। इस तरह मुक्ति प्राप्ति करने में वह अनेक भाववाला नहीं होने से अभवसिद्धिक नहीं है । इसी प्रकार वह मिथ्यादृष्टि न होकर सम्यकदृष्टि ही है । 'नो अनंत संसारए' अनन्तसंसारी न.
ठंडे छे, अने पालन नहीं ४२नारने विराध उहे छे. छडो प्रश्न- "चरिमे अचरिमे । " જેને એક જ ભવ બાકી હોય તેને ‘ચરમ ' કહે છે, પણ અનેક ભવ કરવાના બાકી હોય એવા જીવને અચરમ' કહે છે. સનત્યુમાર એક જ મનુષ્ય ભવ કરીને મેક્ષે જશે • કે અનેક ભવા કરીને મેક્ષે જશે !
उपरना छ प्रश्नाना भवान महावीर प्रभु मा प्रभाशे आये है - " गोयमा ।" हे गौतम! " सणकुमारे देविंदे देवराया" देवेन्द्र देवराष्ट्र सनत्कुमार “भवसिद्धिए नो अभवसिद्धिए" लवसिध्धि छे, अलवसिध्धि नथी. अरण है इन्द्रनो लव यूरो કર્યાં પછી તેઓ મનુષ્ય ભવ પ્રાપ્ત કરીને તે ભવમાં જ મેાક્ષે જશે. મેાક્ષ પ્રાપ્ત કરવા માટે તેમને અનેક ભત્ર કરવા પડશે નહીં. તેએા મિથ્યાદષ્ટિ નથી પણુ 'सभ्यड्रदृष्टि हे "नो अनंतसंसारए " तेभो अनंत संसारी नही यशु " परित