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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३. उ. २ सू०१ भगवत्समवसरणम् चमरनिरूपणश्च ३१९ व्याः सौधर्मस्य कल्पस्य अधो यावत्, अस्ति भगवन् ? इंपत्माग्मोरायाः पृथिव्याः अघोऽसुरकुमाराः देवाः परिवसन्ति ? नायमर्थः समर्थः अथ कुत्र पुनर्भगवन् ! अमुरकुमाराः देवाः परिवसन्ति ? गौतम ! अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः अशीत्युत्तरयोजनशतसहस्रबोहल्यायाः- एवम् अमुरकुमारदेववक्तव्यता, यावत् दिव्यान् भोगभोगान् भुञ्जाना विहरन्ति, अस्ति भगवन् ! अमुरकुमाराणां अहे मत्तमाए पुढवीए, सोहम्मस्स कप्पस्स अहे जाव) इसी प्रकार से सप्तम पृधिवी के नीचे भी असुरकुमार देव नहीं रहते हैं । सौधर्म से लेकर और यावत् दूसरे कल्पों के भी नीचे असुरकुमार देव नहीं रहते हैं। (अस्थि णं भंते । ईसिप्पन्भाराए पुढवीए अहे असुरकुमारा देवा परिवसंति) हे भदंत । जो ईपत्प्रारभारा पृथिवी है क्या उसके नीचे असुरकुमार देव रहते हैं ? (णो इणटे मम?) हे गौतम यह भी अर्थ समर्थ नहीं है । (से कहिं खाइ णं भंते ! असुरकुमारा देवा परिवसंति) तो फिर हे भदंत ! असुरकुमार देव कहां रहते हैं ? (गोयमा!) हे गौतम ! (इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसय सहस्स चाहल्लाए एवं असुरकुमार देववत्तव्वया) एक लाख ८० हजार योजन मोटी इस रत्नप्रभा पृधिवी है उसके अन्तराल में असुरकुमार देव रहते हैं। यहां पर असुरकुमारों संबंधी समस्त वक्तव्यता कहनी चाहिये । (जाव दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहति) यावत् वे दिव्यभोगोंको भोगते सोहम्मस्स कप्पस्स) से प्रभारी सातमी पृथ्वी (न२४) पर्यन्तनी पर પૃથ્વીની નીચે અસુરકુમાર દે રહેતા નથી સૌધર્મ દેવલેકથી લઈને કોઈપણ દેવसोनी नाय पशु तम्मा २उता नथी. (अस्थि णं भंते ! ईसिप्पन्भाराए पुढवीए अहे अमुरकुमारा देवा परिवसंति) महन्त ! शु मसुरभार हे पत्याला२। पृथ्वीनी नीय २ छ? (णो इणने समडे) गौतम । से बात पY परामर नथी. (से कर्हिखाइणं भंते ! अमरकुमारा देवा परिवसंति ?) ता महन्त ! मसुर भा२ । ४यां २७ छ ? (गोयमा ) गौतम! इमीसे रयणप्पभाए पुढबीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सवाहल्लाए - एवं असुरकुमार देववत्तव्यया) એક લાખ એંસી હજાર જન પ્રમાણુવાળી આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીની મધ્યમાં અસુરभा२ हे। २ छे. महा असुरमा समस्त वर्णन ५२वू नये. (जाव दि. बाई भोगभोगाई मुंजमाणो विहरति) तम दिव्य लोग लागवे :मनमान