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मगवती वास्तव्याः बहवोऽमुरकुमाराः देवाश, देव्या ईशानम् देवेन्द्रम् , देवरानम् आदि. यन्ते, यावत्पर्युपासते, ईशानस्य देवेन्द्रव्य, देवराजस्य झोपपात-वचनानिने तिष्ठन्ति, एवं खलु गौतम ! ईशानेन देवेन्द्रेण देवराजेन सा दिव्या देवर्दिः - यावत् अभिसमन्यागता ॥ २५ ॥
टीका-"तएणं से" वतः खल स 'ईसाणे ईशानः 'देविदे' देवेन्द्र देवराजः 'तेसि' तेपाम् 'ईसाणकाप्पवासी' ईशानकल्पवासिनाम् 'यहणे' पीछे खेंच लिया, अर्थात् उनके अपने अपराधी क्षमा मांगने पर ईशान ने उनके अपराध को क्षमा फर दिया और अपनी तेजोलेश्या संहृत करली [तप्पभिच णं गोयमा! ते पलिचंचारायहाणिवत्थव्वया पहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविदं देवरायं आदति, जाय पज्जुवासंति] उस दिन से लेकर हे गौतम ! उन पलिचंचा राजधानी के रहनेवाले अनेक असुरक्रमार देवोंने और देवियों ने देवेन्द्र देवराज ईशान का आदर किया यावत उसकी पर्युपासनाकी! [ ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो आणा. उचचाय वयणनि से चिट्ठति तथा तभी से देवेन्द्र देवराज ईशान की आज्ञा में सेवा शुश्रूषा में, घचन में, और निर्देश में रहने लगे। [एवं खलु गोयमा! ईमा: णेणं देविदेणं देवरपणा सा दिव्या देविडो जाय अभिसमण्णागया] इस प्रकार से हे गौतम! देवेन्द्र देवराज ईशान ने वह दिव्य देवदि यावत् अभिसमन्वागत की है ॥
टीकार्थ-'तएणं' इसके अनन्तर 'ईसाणे देविंदे देवराया देवेन्द्र देवराज ईशानने जच 'तेसिं ईसाणकप्पवासीणं यहणं वेमाणियाण' तोश्या पाछी मेथी दाधी. (तप्पभिई च णं गोयमा ! ते बलिचंचारायहाणि वत्थव्वया वहवे असुरकुमारा देवा य देवीओय ईसाणं देविदं देवरायं आढति, जाव पज्जुवासंति) गीतम! त्याथी २३ प्रशने मसिया पानानिवारी અનેક અસુરકુમાર દે અને દેવિયે દેવરાજ ઈશાનેન્દ્રને આદર આપે છે અને
भनी तपासना ४३. छ. (ईसाणस्स देविदस्स देवरण्णो आणा-उववाय वयणनिदेसे चिट्ठति) त्यारथी तमा देवेन्द्र पर शाननी माशी,पयन भने नियन ઉથામતા નથી. તેઓ તેમની સેવા શુશ્રુષા કરવાને તથા આજ્ઞા અનુસરવાને તત્પર રહે છે (एवं खलु गोयमा ! ईसाणेणं देविदेणं देवरण्णा सा दिवा देविडो जाय अभिसमण्णागया ) गौतम ! मा प्रथरे हेवेन्द्र हे शाने माय 34. સમૃદ્ધિ આદિની પ્રાપ્તિ કરી છે...
थ-"तएणं ईसाणे देविदे देवराया. त्या न्यारे पनिपाली मन या अक्यिान "अविए" पासेयी (मेटने तेभने भुष) विन्द्र देवस