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भगवतीले देव्यच 'ईसाणं ' ईशानं देवेन्द्र देवरानम् 'आदंति' माद्रियन्ते यावत् 'पमा रासंति' पर्युपासते यावत्पदेन परिजानन्ति स्मरन्ति वन्दन्ते नमस्यन्ति इति संग्राह्यम् । ईमानस्य देवेन्द्रस्य देवरानस्य तस्य 'भाणा-उपवाय-त्रयणनिरसे' भाशा-उपपातवचननिदेशे तत्र फर्तव्यमेवेदम्' इत्याचादेशः, उपपातः शमा सेवा, अभियोगपूर्वक आदेशो वचनम् -मनिते शिपये नियतोत्तररूपो निर्देश भाज्ञादिपरिपालने 'चिति' तिष्ठन्ति । 'एवं खलु गोयमा' एवं स्वक हे गौतम ! ईशानेन देवेन्द्रेण देवराजेन सा उपर्युक्ता दिव्या 'देवि देवदिः यावत् अभिसमन्वागता ॥ म० २५ ॥
मूलम्-'ईसाणस्स भंते ! देविंदस्स, देवरण्णो केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! सातिरेगाइं दो सागरोवमाई कुमार देव और देवियां उसी दिन से लेकर ईशानेन्द्र का आदर करने लगे, उसकी पर्युपासना-सेवा करने लगे, उमकी भाज्ञाका पालन करने लगे, वचन मानने लगे और उसके आज्ञा में चलने लगे। 'तप्पभिह'च णं गोयमा! ते पलिचंचारायहाणिवत्यन्वया बहव असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविद देवरायं आढ़ति जाव पज्जुवासंति' इत्यादि अभिसमण्णागया' तक के पदों की व्याख्या स्पष्ट है। 'आणा-उववाय-वयण-निसे' इन पदों का अर्थ इस प्रकार से है- तुम्हें यह काम करना ही होगा इस प्रकार का जा आदेश है वह आज्ञा है, सेवा-शुभ्रपा का नाम उपपात है, अभि. योग पूर्वक आदेश का नाम वचन है। प्रनित विषय में नियत उत्तररूप निर्देश होता है । इस प्रकार हे गौतम ! तुमने जो देवेना देवराज ईशान की देवद्धि प्राप्ति के विषय में पूछा था सो यहां तक हमने तुम्हें कहा कि उसने इस प्रकार से वह दिव्य देवद्धि प्राप्त की है।२५॥ દેવિ ઇશાનેન્દ્રને આદર કરે છે, પર્યું પાસના (સેવા) કરે છે, તેમની આજ્ઞાનું પાલન કરે છે, તેમનાં વચનને ઉથામતા નથી અને તેમના નિર્દેશ પ્રમાણે ચાલે છે. "आणा-उववाय-वयण-निदेसे" न २ मा प्रभाव छ- "भारे साथ ४२j ५४, " 41 रन से मारा ४२सय. ते माज्ञा ४ . ." उववाय " ઉપપાત) એટલે સેવા શુશ્રષા અભિયેગપૂર્વકના આદેશને વચન કહે છે. પૂછાયેલા વિષયના નિયત ઉત્તરરૂપ નિર્દેશ હોય છે. હે ગૌતમ! ઈશાનેન્દ્ર ઉપર કહ્યું તે પ્રકારે (ઉગ્ર તપસ્યા પાદપપગમન સંથાલ આદિના પ્રભાવથી) તે દિવ્ય વતિ આંક પ્રાપ્ત કર્યા છે. સૂ ૨પા