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म. टी. श. ३ उ. १ सू.२९ सनत्कुमारस्य भवसिध्यादिप्रश्नस्वरूपनिरूपणम् २९९ नैश्रेयसिकः हितसुखनैश्रेयसिकः । निःशेषकामुकः, तत् तेन अर्थेन गौतम 1 सनत्कुमारः खलु भवसिद्धिकः यावत् नो अचरमः ।
सनत्कुमारस्य खलु भदन्त । देवेन्द्रस्य देवराजस्य क्रियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ताः १ गौतम ! सप्त सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता ? स खलु भदन्त ! तस्मात् देवलो - कात् आयुःक्षयेण यावत् कुत्र उत्पत्स्यते ? गौतम ! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति, हिय- सुहनिस्सेयसिए, निस्सेसकामए) देवेन्द्र, देवराज सनत्कुमार, अनेक श्रमण जनका, अनेक श्रमणीजनोंका, अनेक श्रावकजनों का और अनेक श्राविकाजनों का हिताभीलापी - हितैषी हैं, सुखाभिलापी हैं। पथ्यकामुख हैं । अनुकंपाशील हैं । मुक्तिका अभिलाषी हैं । तथा समस्त जीव सुखी रहे इस अभिलापावाले है । ( से तेपणणं गोयमा । सणकुमारेण भवसिद्धिए, जाब नो अचरिमे ) इस कारण हे गौतम | मैंने ऐसा कहा है कि सनत्कुमार भवसिद्धिक हैं यावत् वह अचरिमअचरमभववाला नहीं चरमभववाले है । ( सर्णकुमारस्स णं भंते । देविंदस्स देवरण्णो केवहयं कालं ठिई पण्णत्ता) हे भदन्त । देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार की कितनी स्थिति कही गई है ( गोयमा) हे गौतम ! ( सत्तसागरोमाणि ठिई पण्णत्ता) सनत्कुमार की स्थिति सात सागरोपम की कही गई है ! (से णं भंते । ताओ देवलोगाओ आउक्खणं जाव कहि उववज्जिहिइ) हे भदन्त । वह सनत्कुमार उस हिय- सुड़ निस्सेयसिए, निस्सेसकामए ) देवेन्द्र हेवरान सनभार भने श्रमशोना, શ્રમણિયાના (સાધ્વીઓના) શ્રાવકાના અને શ્રાવિકાચ્યાના હિતૈષી ( હિત ઇચ્છનારા ) छे, सुभालिसाषी छे, यध्याभुङ ( दुःम न पडे थेवी अलिसाषावाणा ) छे, અનુકંપાવાળા છે અને તેમની મુકિતના અભિલાષી છે, તથા સમસ્ત જીવેનું सुख हरिछनाश छे. ( से तेणट्टेणं गोयमा ! सणकुमारेणं भवसिद्धिए जाव अचरिमे) हे गौतम! ते भर में से सनत्कुमार अवसिद्धिञ्ज्थी सबने ઉપરોકત ચરમભવવાળા પતના ગુણેાવાળા છે, તેએ! અભસિદ્ધિક, અચરમભવવાળા माहि अप्रशस्त गुहवाका नथी ( सर्णकुमारस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरणो केत्रइयं कलं ठिई पण्णत्ता) हे लहन्त ! हेवेन्द्र देवराज सनत्कुमारनी डेटसी स्थिति (आयुष्य अज) उडेल छे ? (गोयमा ।) हे गौतम (सत्तसागरोवमाणि ठिई पण्णत्ता) सनत्कुभारनी स्थिति सात सागरोपमनी नही छे. (से णं भंते । ताओ देवलोगाभो भाउक्खणं जाव कर्हि उववज्जिहिर) से महन्त ! ते देवसेाभांथा आयुष्यआज पूरी