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भगवतीय स्तात् 'सपरिव' सपक्षम् परितः चतुर्दिा 'सपहिदिसि' सप्रतिदिशम् ईशानादि चतुः कोणेषु 'सममिलीए' समभिलोकयति 'तपणं सा' ततः खलु सा 'लिचंचारायहाणी ईसाणेणं देवि देणं देवरमा अहि सपरिव सपडिदिसि सममिलोइयासमाणी' बलियाराजधानी ईशानेन देवेन्द्रेण देवराजेन अपः उपरि परितः समन्तात् सममिलोकिना सती 'तेणं' तेन 'दिव्बप्पभावणं' दिव्य प्रभाग उष्णतेजोलेश्यारूपेण तेजसा 'इंगालन्भूभा' अनारभूता प्रज्वलत्काष्ठभूता संतप्तायोगोलकात्संजाना (ततलोहगोलकवत् इत्यर्थः) 'मुम्मुरम्भूमा'मुरमुरभूता हु पाग्नि वत्संपन्ना 'छारिय-भूभा' भस्मीभूता इस 'तत्तकवेल्लकन्भूभा' ताकटाहक पलिचंचाराजधानी को 'अहे ' जो कि उसके निवास से नीचे थी 'सपक्खि सपडिदिसिं' चारों दिशाओं से चारों तरफ से और चारों ही ईशान आदि कोनांकी ओर से अर्थात वहीं यैठे २ उसने उसे नीचे ऊँचे सब तरफ से 'समभिलोपद' देखा, इस तरह 'सामलि चंचारायहाणी ईसाणेणं देविदेणं देवरना अहे सपक्खि सपडिदिसि समभिलोइया समाणी' उस देवेन्द्र देवराज ईशान के द्वारा नीच ऊँचे चारों दिशाओं एवं विदिशाओ की तरफ से देखी गई वा पलिचंचाराजधानो उसी समय 'तेणं दिव्यप्पभावेणं' उसके उस दिव्य प्रभाव से- उप्ण तेजोलेश्यारूप अपूर्व शक्ति से 'इंगालभूया' जलत हुए काष्ठ के जैसी हो गई, अथवा संतप्त लोहे के गोले जैमी बन गई। 'मुम्मुरम्भूया' तुपाग्नि के जैसी हो गई अर्थात-जैसे तुषाग्नि धीरे २ सुलगती रहती है वह भी इसी तरह से धीरे २ सुलगने लग गई। 'छारियन्भूया' यहांतक कि वह किसी २ प्रदेश में बिल "वलिचंचा रायहाणी" पाशश हरिया मला समयानी "अहे" २ तमना निवासस्थानी नायनी भानु मावही ती, "सपविश्व सपडिदिसिं सम. भिलाएड"नी या हिशामामा तया न्यारे विशायमांशानालियारे मामा નજર નાખી તેલેશ્યા છેડી તેમની કે.ધાશભરી દષ્ટિ બલિચંચા રાજધાની પર પડતાં તે બલિચંચાના તથા તેમાં નિવાસ કરનારા અસુરકુમારદિના શા હાલ થયા ત नीयता सूत्रमा मतप्यु छ-" तेणं दिवप्पभावेणं" तेमना ते व्यसाथीमनी 6 तरबेश्याना प्रभावथा गलियया पानी "इंगालम्भया" साता 05नवी अथवा तपास acial | नेवा पनी , " या" તષાનિ જેવી રીતે ભૂસાને સળગાવવાથી ધીમે ધીમે સળગ્યા કરે છે એવી રીતે ધીમે धाम ससा सासी. "प्रारियम्भूया" आई प्रदेशभात ते मणी रामरा