________________
२५०
भगवती सूत्रे
कुपिताः सञ्जातकोपोगाः 'पंडिकिया' चण्डकिताः रौद्ररूपापन्नाः 'मिसिमिसे माणा मिसमिसयन्तः क्रोधज्वालया देदीप्यमानाः कम्पन पूर्वकं 'मिसमिस' इति शब्दं कुर्वन्तो वा 'बलिना रायाजी' बलिचञ्चाराजधान्याः 'मां मझेगं' मध्य मध्येन मध्यभागेन 'निरगच्छति' निर्गच्छन्ति, 'ताए उट्टियाए' तथा कयाऽपि विलक्षणया उत्कृष्टया उत्कर्षवत्या इत्यस्य यावत्पदसूचितेन ' देवगत्या' इत्यनेनान्वयः जाव- जेणेव ' यवत् यत्रैत्र
•
6
"
,
क्रोधयुक्त हो गये आंठों आदिके फड़कने रूप क्रोध के निह उनमें स्पष्ट झलकने लगे । 'कृविया' कोप का उदय उनके हो गया है यह बात अच्छी तरह से देखने वालों को प्रतीत कोटि में आने लग गई । 'डकिया' उनका रूप रौद्र वन गया 'मिसमिसेमाणा' क्रोध की ज्वाला से देदीप्यमान होते हुए वे अपने ओठोंको अपने ही दांतोंसे काटने लग गये अथवा 'मिसमिस' इस प्रकार के शब्दको करने लगे इस प्रकारकी स्थिति संपन्न होते हुए देवि देवता 'थलिकांचारायहाणीए' बलिचंचा राणधानी के 'मजां मज्झेणं' ठीक बीचों बीच से होकर 'निगच्छति' निकले । 'ताए उडिया' निकलते समय उनकी गति विलक्षण थी एवं उत्कृष्ट और उत्कर्षवाली थी । यहां जो यावत्पद का प्रयोग हुआ है उससे "तुरियाए, चवलाए चंडाए, जहणाए, देयाए, सीहाए, सिग्याए, उद्घृयाए, दिव्वा देवगईए तिरियं असंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झ मज्झेणं जेणेव जंबूद्दीवे दीवे" इन पदोंका संग्रह हुआ है । इस प्र ક્રોધને કારણે તેમની બુદ્ધિ ભ્રમિત થઇ ગઇ તેએ માનસિક સમતુલા ગુમાવી બેઠા 'होनुं धन' आदि डोधना थिना तेमना भुम पर स्पष्ट हेणावा लाग्या. "कुत्रिय" તેઓના મનમાં કેપના ઉદ્ય થા છે, એ વાતની પ્રતીતિ તેમની સામે જોનારને थवा सागी "चडकिया" तेभाणे रौद्र३य धार यु “मिसमिसेमाणा" शेषश्ची અગ્નિથી તેમની મુખાકૃતિ દેદીપ્યમાન થઇ ગઇ. તેઓ દાંત કચકચાવીને તથા પેાતાના દાંત નીચે હાઠ કરડીને પોતાના કોધ પ્રકટ કરવા લાગ્યા. આ પ્રકારે અતિશય अधथी युक्त थयेला ते असुरकुमार हेवा भने हेप्यो "बलिचचारायहाणीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छंति" नसीर्थ या राज्धानीनी णराणर वभ्ये भावेसा भार्गे थी भागण वध्या. "ताए उक्कियाए" त्यांथी नीणती वप्यते तेभनी शति विषक्षणु,
ष्ट, त्वरित, अपस, थंड, यशालिनी, निपुणु, सिंहतुल्य, शीघ्र, उध्धूत भने हिव्य હતા. આ પ્રકારની દિવ્ય ગતિથી તિય ગ્લાકના અસખ્ય દ્વીપસમુદ્રોને પાર કરીને