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म. टी. श. ३ उ. १ सू. २४ देवकृत तामले शरीर विडम्बन निरूपणम्
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एवम् 'केसणं से ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंदे देवराया' कः एप सः ईशाने कल्पे ईशानो देवेन्द्रः, देवराजः ? न कोऽपि ईशाननामा देवेन्द्रः देवराजः ईशाने कल्पे वर्तते 'चिकट्टु' इति कृत्वा इत्येवंरूपेण ते असुरकुमाराः भर्त्सयन्तो वातपस्विनः तामलेः मृतशरीरकम् 'डीलंति' डीलयन्ति जन्मकर्म मर्मोद्घाटनपूर्वकं निर्भत्सयन्ति ' निन्दन्ति ' कुत्सितशब्दपूर्वकं दोपोदुद्घाटन अनाद्रियन्ते 'विसंति' हस्तमुखादिविकारपूर्वकम् अपमानयन्ति 'गरि हंति' गर्छन् लोकसमक्षे गर्हणां कुर्वन्ति 'अवमन्नंति' अवमन्यन्ते - अवहेलना - स्पदं कुर्वन्ति, 'तज्जंति' तर्जयन्ति अङ्गुल्यादिनिर्देशेन भर्त्सयन्ति, ताडयन्ति य
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ग्रह तामलि है। तथा 'केसणं ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंदे देवराया' ईशानकल्प में देवेन्द्र देवराज ईशान कौन ? यह वहां भलां अपनी मायाचारी से पालित दीक्षा के प्रभाव से इन्द्र हो सकता है क्या ? वहां पर इन्द्र होने के लिये तो निर्दोषरूप से पालित दीक्षा चाहिये परन्तु ऐसा इसने कुछ नहीं किया है, अतः यह वहां ईशानेन्द्र कैसे हो सकता है ? 'त्ति कट्टु' इस प्रकार घोषणा में कह करके उन असुरकुमारों ने बालतपस्वी तामली के मृतक शरीर की भर्त्सना ( तिरस्कार) करते हुए 'हीलंति ' जन्म, कर्म और मर्मोद्घाटनपूर्वक उसकी खूब अवज्ञा की 'निंदति' निन्दाकी कुत्सिक शब्दों का प्रयोग करते हुए खोटे आक्षेप कह २ कर उसका खूब अनादर किया 'मिति' वे उसके प्रति खूब खििसया गये अर्थात् अपने हाथ मुँह विकृत बना २ कर उन्होंने उसका अपमान किया ' गरिहंति लोकों के समक्ष उसकी गर्हणा की, 'अवमन्नंति' अवहेलना की इंशवा भाडे आ द्वेष अटुषु अर्यो छे तथा “केस णं ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंदे देवराया 22 શું ઈશાન દેવલાકના ઈન્દ્ર બનવાનું તેનું સામર્થ્ય છે ? શું તેની ભી દીક્ષાના પ્રભાવથી તે ઈશાનેન્દ્રનું પદ પ્રાપ્ત કરી શકે તેમ છે ? ત્યાં ઇન્દ્ર બનવા માટે તા જૈિવ રીતે દીક્ષા પર્યાયનું પાલન થવું જોઇએ. પશુ તામલીએ એ રીતે દીક્ષા પાળી નથી, તે તે કેવી રીતે ઇશાનેન્દ્ર ખની શકે? "त्तिक" उपरोक्त घोषणा अरीने ते असुरकुमारी ते मासतपश्वी तामसीना शणनी भत्र्सना (तिरस्कार) ४२३ " हीलंति " तेना जन्म, अर्भ अने भर्मने मूल्यां પાડીને તેની ખૂબ અવજ્ઞા કરી નિ”િ નિન્દા કરી કઠોર શબ્દોના પ્રયાગ કરીને तथा गोटा भयो भूमीने तेना नाहर ये " खिसति " तेभवे तेना प्रत्येने तेभना शेष हाथ तथा भुमनी विठ्ठत येष्टाओ द्वारा प्र४८ यो “ गरिहंति " सोडानी समक्ष तेमधे तेनी गडया (निध) उरी, " अत्रमन्नंति " अवहेलना पुरी,
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