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भगवती सूत्रे भागमात्रायाम् - अवगाहनायाम्, ईशाने देवेन्द्रविरहका समये ईशानः देवेन्द्रतया उपपन्नः, ततः स ईशानो देवेन्द्रः, देवराजोऽघुनोपपन्नः पञ्चविधया पर्याया पर्याप्तिभावं गच्छति, तद्यथा-आहार पर्याप्त्या यावत् भाषा मनःपर्याप्त्या । मृ०२३१
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टीका- 'तरणं से' ततः खलु स ' तामली' तामलि: 'वातवस्त्री' वाल तपस्वी 'तेहि' तैः 'बलिवारायहावित्यचेहिं बलिचचाराजधानीवास्तव्यैः 'वहूहि' बहुभिः 'अमरकुमारेहिं' अमुस्कुमारेः 'देवेहिं' देवेंः 'देवीटि' देवी मिश्र 'एवं वृत्ते समाणे' एवम् उपर्युक्तरूपेण उक्तः अभिहितः सन् 'एयमहं '
पात सभा में, देवशय्या में देवदृष्यसे ढके होकर उत्पन्न हुए, उस समय उनकी अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भांग प्रमाण थी । जिस समय ये यहां उत्पन्न हुए उस समय ईशानकल्प में देवेन्द्र का विरह था। वहां ये ईशानेन्द्र की पर्याय से उत्पन्न हुए (अहुगोचवन्ने तपणं से ईसाणे दविदे देवराया) नचीन उत्पन्न हुए देवेन्द्र देवराज ईशान ने (पंचविहार पज्जतीए पञ्जतीभावं गच्छड़) वहां पर अपनी पांच पर्याप्तियों को पूर्णकिया । (तंजा) वे पांच पर्याप्तियां इस प्रकार से है- (आहारपजत्तीए जाव भासामणपज्जत्तीए) आहार पर्याप्ति यावत् शरीरपर्याप्ति इन्द्रियपर्याप्ति, भाषापर्याप्ति, मनःपर्याप्ति । इन पांच पर्याप्तियों से वह वहां पर्याप्त हुआ || सु० २३ ॥
टीकार्थ - इस प्रकार बलिचं चाराजधानी के निवासी असुरकुमार आदिकों के द्वारा बारा बार प्रार्थित होने पर भी जब बालतपस्वी શય્યામાં દેવદૂષ્ય (દેવ વસ્રો)થી સજ્જ થઈને ઉત્પન્ન થયા. તે સમયે તેમની અવગાહના અંગુલના અસüાતમાં ભાગપ્રમાણ હતી. જ્યારે તે ત્યાં ઉત્ત્પન્ન થયા ત્યારે ઈશાનકલ્પમાં ડૅવેન્દ્રને વિરહ હતેા-ઇશાનકલ્પ કેંન્દ્ર વિનાનું હતું. ત્યાં તેએ ઇશાને न्द्रनी पर्या॑ये उत्पन्न थया, (अहुणोववन्ने तरणं से ईसाणे पज्जत्तीए देवराया) नवीन उत्पन्न थयेला ते देवेन्द्र, देवराय ४शाने (पंचविहार पज्जत्तीए पज्जत्तीभावं गच्छइ) त्यांचातानी यांचे पर्यासियो । उरी. (तं जहां ) ते पांय पर्याप्तियोनां 'नाम नाथ प्रभा छे-(आहारपज्जत्तिए जाव भासामणपज्जत्तिए) आपर्याप्ति ઇન્દ્રિય પર્યાપ્તિ, શરીર પર્યાપ્તિ, ભાષા પતિ અને મનઃપર્યાપ્ત. તેપાંચ પર્યાપ્તિો
'' उरीने तेथे पर्याप्त मन्या ॥ सू. २३ !!
ટીકા—અલિચચા રાજધાનીના અસુરકુમાર દેવ દેવીયોએ ખલિચ ચાનું ઇન્દ્રા સન સ્વીકારવા માટે ખાલતપસ્વી તામલીને વારવાર ... વિનંતી કરી પણ તેમણે તેમને