________________
१७८
भगवती
-
-
-
-
-
-
-
-
-
निमित्या भुक्तोत्तरागतोऽपि च खलु मन भावान्तः चोक्षः, परमविभूतः । मित्रम्, यावत् परिजनं विपुलेन भशन-पान-ग्याध स्वान पुष्प वव गन्ध-माल्या ऽलङ्कारेण च सत्कारयति, सन्मानयति, सत्कार्य मम्माम नस्य एव गित्रातः यावत्-परिजनस्य पुरतो ज्येष्ठपुत्रं कुटुम्ये स्थापयति, म्यापयिस्वा तं मित्र शातिम्, यावर परिजनम्, ज्येष्ठं पुत्रश्न आपृच्छति, आपृच्छय, मुण्डो भूत्र (जिमियभुत्तुतरागए वियणं ममाणे आयते) जीमधुकने के बाद ही उम उसी समय आचमन कुल्ला किया चिोक्खे, परम सुहाभूप] दोनों हा' धोये मुंह धोया वस्त्रों पर जहां भोजन आदि के सीत पडे थे उन साफ किया इस तरह वह परम शुचीभूत हुआ [तं मित्त जाव प रियणं विउलेणं असणं पाणं खाइमं साइम पुप्फवस्यगंध मल्लालंका रेण सफारेइ बाद में भी आये हुए अपने मित्रजनों को यावत् प रिजनों को उसने जिमाया इस प्रकार अपने मित्रादि समस्तजनो को चारो प्रकार का आहार जप वह अच्छी तरह से करा चुका तय इसके उपरान्त उसने उन सयका पुप्प, वस्त्र, गंध, माला और अलं कार इन सब वस्तुओं से सत्कार किया सम्माणे] सन्मान किया [तस्सेव मिनणाइ जाव परियणस्स पुरओ जेट्टपुत्त कुटुंबे ठावेई सत्कार सन्मान करने के पश्चात् उसने उन्हीं मित्रजन आदि सबके समक्ष अपन जेष्ठपुत्र को कुटुम्ब में स्थापित किया, ठिावेत्ता तं मित्तणाइ जाव परियणं जेट्ठ पुभं च आपुच्छइ स्थापित करके फिर उसने उससे और तर तर मित्राने माया. इजिमियभुतुत्तरागए वि य गं समाण अ
भ्या पछी तुरतर तो l चौक्वे. परमसहभए] or डाय पाया મેં ધોયું, ભેજન કરતી વખતે વસ્ત્રાપર પડેલાં ભેજન આદિને ડાઘ સાફ કયા આ शत अतिशय शुथियुत यो तमित्तं नाव परियणं विउलेणं असण पाणं खाइमं साइमं पुप्फरत्यगंधमल्लालंकारेण सकारेडी त्या२ माई ५५ १ भित्री, allavने, स्पना, पसिना माया, तभन पय मान, पान, माघ સ્વાદને આધાર કરાવ્યું અને ફૂલ, વસ્ત્ર, સુગંધી દ્રવ્ય, માળાઓ અને અલ કારથિ तमना सा२ या, [संम्माणेई] भने सन्मान यु तस्सेव मित्तणा जाव परियणम्स पुरओ जेदुपुत्तं कुटुंबे ठोवेड] स२ सन्मान र्या पछी र મિત્રો, જ્ઞાતિજને, કુટુંબીઓ અને પરિજન સમક્ષ પિતાના સૌથી મોટા પુત્રને
मनी वारी सांपqाम मावी. ठावेत्ता तं मित्तणाइ जाव परियणं जेहं पतंच आपुच्छइ] त्या२ मा त भित्रो, तिना, परना, परिगो भने