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भगवतीने लिप्त्यां नगर्याम् उच-नीच मध्यमानि कुलानि गृहसमुदानस्य मिक्षा चर्यया अटित्वा शुद्धोदन प्रतिगृह्य तं त्रिसप्तकत्वः उदकेन प्रक्षाल्य ततः पचात् आहार आहर्तुम् इति कृत्वा एवं संमेक्षते, संमेक्ष्य फल्यं मादुप्पभातायां यावत-ज्वलति, स्वयमेव दारुमयं प्रतिग्रहकं करोति, कृत्या विपुलम् अशन पान खाघम्-स्वायम् उपस्कारयति, उपस्कार्य ततः पश्चात् स्नातः, कृतवलिकर्मा, कृतकोतुकमालकाष्ठनिर्मित पात्र लेकर (तामलिसीए नयरीए) ताम्रलिप्ती नगरी में (उच्चनीय मज्झिमाई कुलाई धरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्ता) ऊंच, नीच, मध्यम कुलों में गृह समुदान की भिक्षा प्राप्ति के निमित्त की गई चर्या पूर्वक शुद्ध भिक्षा लेने के लिये भ्रमण करूँगा भ्रमण करके (सुद्धोदनं परिगहित्ता, वहांसे शुद्धोदन मात्र केवल भात लूंगा लेकरके (तं तिसत्तखुत्तो उदएणं पक्खालेत्ता उसे २१ बार जल से धोऊँगा। धोकर के (तओ पच्छा आहारं आहरित्तए) इसके बाद उसका आहार करूँगा (तिक एवं संपेहेइ) इस प्रकार का अभिग्रह लेने का उसने विचार किया। (संपेहिता कल्लं पाउन्भूयाए जावजलंते इस प्रकार के विचार के बाद प्रातःकाल हो गया यावत् सूर्य उदित हो गया) (सयमेव दारुमयं पडिग्गहयं करेइ) उसने स्व. यमेव काष्ठका पात्र तयार किया (करिता) तयार करके (विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडावेइ) फिर उसने पुष्कल अशन, पान, खादिम स्वादिम चार प्रकार का आहार निष्पन्न कराया। जब चारो प्रकार का आहार निष्पन्न होचुका तब उसके बाद (हाए) (सुद्धोदनं परिगाहेत्ता) भात्र शुद्ध HId - पहारीश. (तं तिसत्तखुत्तो उदएणं पक्खालेत्ता) ते मातने २१ मत पाथी . शते २१ मे पीस पार पाथी पाये (तओ पच्छा आहारं आहरित्तए) ते तन त्या२ मा २२ रीश (त्तिक एवं संपेहेइ) 0 रन स४५ तेभर ध्या.
(संपेहिता कल्लं पाउन्भयाए जाब जलते) मा प्रभाव स४६५ ४ा पछा न्यारे रात्री पूरी य मने सूर्य नाय थयो त्यारे (सयमेव दारूमयं पडिग्गयं करेड) तभी तक 18i पात्रो तयार ४ा. (करिता) पात्रो तयार ४ा पछी [विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडावे ] तभो भोटो प्रभावमा अन्न, પાન, ખાદ્ય સામગ્રી તૈયાર કરાવી. આ રીતે ચાર પ્રકારના આહાર તૈયાર કરાવીને