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भगवतीसूत्रे प्रतापशाली 'जाव' यावत्-यावत्पदेन-'वित्यिण विउल-मवण-सपणासणजाण-वाहणाइणो बहुधण-बहुनायरुव-यए आमोगपओग संपउत्ते विच्छविय विउलभत्तपाणे बहुदासी-दास गोमहिसगवेलयप्पभूए' इत्यस्य ग्रहणम् , अभ्या. यस्तु उपासकदशाङ्गमत्रे प्रथमाध्यपने तृतीयमूने आनन्दगाधापति प्रकरणे अगारधर्मसंजीवनी टीकायां विलोकनीयः, तेजस्वी 'बहुजनस्स' बहुभिजनरपि 'अपरिभूएयावि' अपरिभूतश्चापि 'अइढे दित्ते, अपरिभूए' एभित्रिभि विशेषणैः मौर्यपुत्र-गाथापती प्रदीपदृष्टान्तोऽभिप्रेतस्तथाहि यया प्रदीपस्तेलवर्तिभ्यां शिखया च सम्पनो निर्यात स्थाने मुरसिनः प्रकाशमामादयति, एवमयमपि तैल-यति-स्थानीयया आढयताऽपरपर्यायचा, शिखा-स्थानीयोहो सके ऐसा नहीं था यहां 'यावत्' शब्दसे 'वित्यिक विउल-भवण सयणासण-जाणवाहणाओ बहुजण यहजायख्व-रयाए, आओगपओगसंपउत्ते, विच्छड्डिय विउलभत्तपाणे, यहुदासीदास गोहिस गवेलयप्प भूए' इस पाठका संग्रह हुआ है। इन पदोंका अर्थ उपासकदशा सूत्र में प्रथमाध्ययनमें तृतीयमुत्रमें आनन्दगाधापति के प्रकरणमें अगार संजीवनी टीका में लिख दिया गया है.सो वहां से देख लेना चाहिये। 'बहु जणस्स अपरिभूए यावि' इस पाठ द्वारा सूत्रकारने ताम्रलिप्त में तेजस्विता प्रकट की है। इसी लिये अनेकजन मिलकर भी उसका थाल वांका नहीं कर सकते थे । 'अढे दित्ते अपरिभूए' इन तीन विशेपणोंसे मौर्यपुत्र गाथापतिमें प्रदीपका दृष्टान्त घटित हुआ है जिस प्रकार दीपक पत्ती और सैल से तथा अपनी शिखा से युक्त होकर सुरक्षित निर्यातस्थानमें रखे जाने पर प्रकाशित होता रहता सूत्रा6 Rs ४२सये। छ- “ वित्यिण्णविउलभवणसयणासण--जाणवाहणाओबहुजणवहुजायख्व-रयए, आओगपभोग संपउत्ते, विच्छड्डिय-निउलभत्तयाणे, बहुदासीदासगोमाहिसगलयप्पभूए " 20 सूत्रानो अर्थ GIABALIसूत्रना પહેંલા અધ્યયનના ત્રીજા સુગમાં આનંદ ગાથાપતિના પ્રકરણમાં અગારસંજીવની
Hi माघेसी . तो त्यांशी पांधी a. "बहुजणस्स अपरिभूए यावि" मा સત્રપાઠ દ્વારા તામલીના પ્રભાવ બતાવ્યું છે. અનેક લોકો મળીને પણ તેને વાળ पांडा रीता नहीं"अढे दित्ते अपरिभूए' मात्र विशेष द्वा२। તામલિને દીપક સાથે સરખાવી શકાય. જેવી રીતે વાટ, તેલ અને જેતથી ચુકત દવાને કોઈ સુરક્ષિત (પતન ન નડે એવા સ્થાનમાં રાખ્યું હોય તે તે તેને પ્રકાશ આપ્યા કરે છે, એવી રીતે તેલ અને વાટરૂપી ધનાઢયતાથી, અને ઉદારતા ગંભીરતા