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भगवतीse
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समृद्ध्यादिकं पूर्वदेवदेव, किन्तु पूर्व देवापेक्षया अधिकवेक्रियरूपनिर्माणद्वारा द्वात्रिंशत्संख्यकान् सम्पूर्णान् जम्बूद्वीपान् व्याप्तुं स समर्थ इत्याह-'नवरं ?वत्तोमं केवलप्पे' ति । 'ए' तेथे 'अच्चुपवि' अच्युतेऽपि समृद्धादिकं विज्ञेयम्, 'नवरं' विशेषः पुनरेतावानेव यत् 'सातिरेगे' मानिरेकान् गारिकान 'बत्तीसं' द्वात्रिंशत्संख्यकान् 'केवलप्पे' केवलकल्पान् सम्पूर्णान् 'जम्बूदीपनामक द्वीपान् पूरयितुं समर्थ इति सर्वातिशायिनी अस्य विकुर्वणाशक्तिरस्ति 'अणं तंचेव' अन्यत्पुनः सर्वतदेव पूर्ववदेव ज्ञातव्यम् । इदमंत्र उच्यम् शक्रेन्द्रादारभ्य अन्युतेन्द्रपर्यन्तेषु दशसु देवेन्द्रेषु शक्रादिकान एकैकान्तरितान् पच दक्षिणार्धलोकाधिपतिदेवेन्द्रान् अग्निभूतिः भगवन्तं पृष्टवान् ईशानादिभो पूर्वकी तरह ही समृद्धयादिका संबंध है परन्तु यहां पूर्वदेवोंकी अपेक्षा अधिक वैक्रियरूप निर्माणद्वारा ३२बत्तीस जंबूदोपों का संपूर्णरूपसे भर मकनेको शक्ति है । यही बात 'बत्तीस केचलकप्पे' इस पाठ द्वारा प्रदर्शित की गई है। 'अच्चुए वि एवं अच्युतमें भी समृ पूर्वी तरहसे ही जानना चाहिये । परन्तु इनकी विकुर्वणाशक्ति में जो अन्तर है वह 'सातिरेगे पत्ती केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे' इम प्रकारसे है कि ये अपनी विकुर्वणाशक्ति से निर्मित नानारूपोंद्वारा कुछ अधिक ३२ बत्तीस जंबूद्वीपों को पूर्णरूपसे भर सकते हैं। इस तरह अच्युतकी विकुर्वणाशक्ति सबसे अधिक है। 'अण्ण तंचेच' बाकीका और मव कथन पहिले की तरह से ही जानना चाहिये। यहां तात्पर्य ऐसा है- शक्रेन्द्रसे लेकर अच्युत पर्यन्त दश देवेन्द्रोंमें से एकान्नरित पांच दक्षिणार्धलोकाधिपति देवेन्द्र के संबंध में "एवं पाए त्रि" आत उपना न्द्रनी समृद्धि माहिना विषयमा पशु शोभन सभधुं. "नवरं वत्तो केवलकप्पे" पशु ते तेनी विदुर्वया शक्तिथा निर्मित इये। वडे ३२ मत्रीस ?प्पूद्धीच भेटली ज्याने भरी शो "अच्चुए वि एवं" अभ्युत દેવલાકના ઇન્દ્ર આદિની સમૃદ્ધિનું વર્ણન આગળ ગુજખ સમજવું! પણ તેમની વિધ્રુવ ણુા શકિતમાં નીચે પ્રમાણે વિશેષતા છે-- " सातिरेगे aati केवलकप्पे जंबूदी के दीवे" तेथे तेमनी विदुर्वया शक्तिथा निर्मित विविध वैकिय यो वर મંત્રીશ જ ખૂદ્રીપ કરતાં પણ વધારે જગ્યાને ભરી શકવાને સમ છે. આ રીતે अभ्युत उपवासी हैवोनी विदुर्षा शक्ति सोधी वधार छे." अण्णं तंत्र " બાકીનું મસ્ત કથન આગળ મૂજબ સૂવું. શક્રેન્દ્રથી શરુ કરીને અચ્યુત સુધીના દસ દેવેન્દ્રોમાંના પાંચ દક્ષિણાય લેાકાધિપતિ દેવેન્દ્રો વિષે અગ્નિભૂતિએ મહાવીર