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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.१ इशानेन्द्रस्यदेवद्धर्यादिमाप्तिकारणनिरूपणम् १७५ स्वयमेव दाममयं प्रतिग्रहं गृहीत्वा, मुण्डो भूत्वा, प्राणामिक्या प्रवज्या प्रवजितुम्, प्रबजितोपि खलु सनइमम्एतदरूपम् अभिग्रहम्-अभिग्रहीप्यामि कल्पते मम जावज्जीवं पप्ठं पप्ठेन, अनिक्षिप्तेिन, तपः कर्मणा, ऊचे वाहूप्रगृह्य प्रगृह्य-सूर्याभिमुखस्य आतापनभूमी आतापयतो विर्तुम्, पप्ठस्थापिच पारणे आतापनभूमितः प्रत्यवरुह्य स्वयमेव दारुमय प्रतिगहकं गृहीत्वा ताम्रपुत्र से पूछ करके (मयमेव दाममयं परिग्गहं गहाय) स्वयं ही काप्ठनिर्मित पात्रोको लेकर (मुंडे भवित्ता) मै मुंडित हो जाऊँगा । और मुंडित होकर के (पाणामाए पञ्चजाए पवइत्तए) फिर मै "प्राणामिकी" प्रव्रज्यासे प्रव्रजित हो जाऊंगा। (पव्यइए विधणं समाणे इमं पया. रुवं अभिग्गहँ अभिगिहिस्सामि) प्रवर्जित होते ही मै इस प्रकार के इस अभिग्रह को धारण करुंगो कि (कप्पड़ में जायज्जीवाए छठे छट्टेणं अणिक्वित्तेणं तवोकम्मेणं) मैं यावज्जीच निरन्तर छ? छट्टकी तपस्या करता रहूंगा, तथा (उडू याहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमिए आयावेमाणस्स विड़रित्तए) तथा ऊर्ध्वयाह होकर सूर्य के सामने आतापन भूमि में आतापना लेता रहूंगा (छहस्सवियणं पारणगंसि आयावणभूमीओ पचोरुहित्ता) तथा दो उपवास के बाद जब पारणा का दिन आवेगा तब मै आतापना लेनेकी भूमि से नीचे उतरकर (सयमेव दारुमयं पडिग्गहं गहाय) अपने आपही परिगह गहाय) भारी ते 18 थित पात्रोने अY ४शने (मुंडे भवित्ता भाये भु. ४२वीन गाणामाए पयजाए पवइत्तए]"
प्रामी " या २ ४२१२२. (पन्धहए वि य णं समाणे इमं एयारूच अभिग्गहं अभिगिहिस्सामि Harit A २ ४ ५७ रन अभिड धा२१ शश- [प्पड़ में जावज्जीवाए छटं छद्रेणं अणिक्वित्तणं तवोकम्मेणं) वन पर्यन्त निरंतर छने पाहो नी तपस्या ४Nश, तया (उड वाहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय मुराभिमुहस्स आयावणभमिए आयावेमाणस विहरित्तए ने साथ या રાખીને સૂર્યની સામે ઉભા રહીને તડકાવાળી ભૂમિમાં આતાપના લીધા કરીશ. (छट्स वि य णं पारणगंसि आयावणभमीओ पचोरुहिना) ना पाएपनि पिस माताना देवानी याथा नाय तरीन (सयमेव दारुमय पडिग्गहें गहाय) भा२॥ पाताना डायमा ४।०४२थित पात्रो न तामलित्तीए नयरीए] तामाला नगरीभा (उच्च, नीच, मज्झिमाइंकलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायारयाए अडित्ता) अय, नीय, भने मध्यम धसभा भिक्षा मास ४२वा भाट प्रभा शश.