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भगवती . छाया-एवं सनत्कुमारेऽपि, नवरम् चतुरः केवलकल्यान -जम्मूदीपान ही पान्, अयोत्तरश्च नियंगसंख्येयान्, एवं सामानिकायविंग लोकपाल-बर महिपीणाम् असंख्येयान द्वीप-समृदान सर्वे विन्ति , सनत्कुमाराद् भारधाः उपरितनाः लोकपालाः सर्वेऽपि असंख्यगन् दीप-समुद्रान् ह. 'एवं सर्णकुमारे वि' इत्यादि।
सूत्रार्थ-(एवं सणकुमारे वि) इसी तरह से मनत्कुमार विषय में भी जानना चाहिये। (नवरं) परन्तु जो इसमें विशेषता है वह इस प्रकार से है (चत्तारि केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे अदुत्तरं च णं तिरिय. मसंखेज्जे) इसकी विकर्षणा इतनी है कि यह उसके द्वारा निष्पन्न नानारूपों से चार जंतूरोपो को भर सकता है। (सामाणिय ताय. तीस-लोगपाल-अगमहिसी णं असंखेज्जे दीवममुई सब्वे विकुति) इसी तरह से सनत्कुमारके सामानिक देव, प्रायस्त्रिंशकदेव, लोकपाल
ओर अपने परिवार सहित अग्रमहिपियों के विपयमें भी जानना चाहिये-अर्थात्-ये सब अपनी विकुर्वणा शक्ति द्वारा निर्मितरूपोंसे पूरे चार जंबूद्वीपोको भर सकते है और तिरछे रूपमें असंख्यात डीप समुद्रों को भर सकते हैं । (सणेकुमाराओ आरद्धा उपरिल्ला लोगपाला सव्वे वि असंखेज्जे दीवसमुद्दे विक्कुञ्चति) सनत्कुमारसे लेकर ऊपर के समस्त देव और देवियां असंख्यात द्वीप समुद्रों तक विकुर्वणा कर
"एवं सणंकुमारे बि" त्या
संत्राथ- ( एवं सणकुमारे वि) मे प्रमाणे सनमारना विषयमा ५५ समा(नवरं) पर सनमारनी विवाभानीय प्रभारी विशेषता छ (चत्तारी केवलकप्पे जंबुटीवे दीवे अदुत्तरं च णं तिरियमसंखेज्जे) भनी विला શકિતથી નિમિતે રૂપિ વડે ચારે જંબુદ્દીપને તથા તિર્યશ્લોકના અસંખ્યાત દ્વીપ समुद्र ने 1 शबाने समर्थ छ. (एवं सामाणिय - तायत्तीस - लोगपाल अग्गहिसीणं असंखेज्जे दीवसमुद्दे सव्वे विकुवंति) सनभाना साभानि દેવો, ત્રાન્સિંશક દેવો, લોકપાલો. અને પરિવારથી યુક્ત પટ્ટરાણના વિષયમાં પણ એ જ પ્રમાણે સમજવું. એટલે કે તેઓ પણ તેમની વિઠ્ઠવણ શકિતથા ઉત્પન્ન કરેલાં ઉપ વડે પૂરેપૂરા ચાર જ વૃદ્ધ પેને તથા તિર્થલાકના અસંખ્યાત દ્વીપ સમૂદ્રોને ભરી શકે છે: (सणंकुमाराओ आरद्धा उवरिल्ला लोगपाला सवे वि असंखेज्जे दीवसमुहे निकुञ्चति) सन मास्थी ने धरना समस्त वो भने वाम सभ्यात द्वीप समुद्रीन पाताना वैश्य पोथी मरीश छ, (एवं माहिदे चि) भाड-द्रना