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भगवतीमत्र टीका-द्वितीयो गणधरः अमिभृतिः धरणेन्द्रपकरणवर्णितज्योतिष्कदेवविशेषसम्बन्धिसमृद्ध पादिमुपश्रुत्य शमेन्द्रसम्बन्धिसमृद्धयादि जिज्ञासया भगवन्तं पृच्छति- भंते "ति । हे भदन्त ! 'मग' भगवान, दोच्चे गोयमें द्वितीयो गौतमः गौतमगोत्रीयः 'अग्गिभूई' अमिभूतिः गणधरः 'अणगारे' अनगारः, 'समण' श्रमणं, 'मग' भगवन्त' 'महावीर' 'वंदई' वन्दते स्तीति, 'नमंसई नमस्यति नमस्करोति 'वंदित्ता' वन्दित्वा 'नमंसित्ता' नमस्तस्य 'एवं' वक्ष्यमाणभकारेण 'वयासी' अवादील-अश्ययन-'जाण' यदि खल्ल निश्चयेन 'भंते'! भदन्त ! 'जोइसिदे' ज्यौतिपेन्द्रः 'जोइसराया' ज्योतिपरानः ही जानना चाहिये । (एसणं गोयमा ! सफरस देविंदस्स देवरणो इमेयाख्वे विसए विसयमेत्तेणं घुइए, नोचेव संपत्तीए विकुश्चितु वा, विकुविइ वा विकुन्धिस्सइ वा) हे गौतम ! शकेन्द्र की विकर्षणा करने के विपय में जो ऐसा कहा गया है वह सिर्फ उसकी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिये ही कहा गया है इस प्रकार की विकुर्वणा करके उसने आजतक न ऐसा किया है और न वह वर्तमान में ऐसा करता है और न भविष्यत् में वह ऐस करेगा ही ॥ सू० ९ ॥ __टोकार्थ-दितीम गणधर अग्निभूति धरणेन्द्रके प्रकरणमें वर्णित ज्योतिपिकदेव सम्बन्धी समृद्धि आदि को सुनकर अब वे प्रभु से शकेन्द्र संबंधी समृद्धयादि को जानने की अभिलापासे पूछते हैं"भंते ! त्ति' हे भदन्त! ऐसा कहकर पहिले उन्होंने प्रभु की वंदना की, उन्हें नमस्कार किया, बाद में प्रभु से उन्होंने विनयावनत होकर इस प्रकार कहा- हे भदन्त ! 'जइणं भंते' हे भदन्त ! यदि 'जोइ. सभा. (एसणं गायमा सक्कस्स देविंदस्स देवरको इमेयारूचे विसए विसयमेत्तेणं बुइए नो चेव संपत्तीए विकुन्विसु वा विकुबइ वा विकुबिस्सइ वा) હે ગૌતમ ! દેવેન્દ્ર શુક્રની વિકુણુ શકિતની આ જે વાત કરવામાં આવી છે તે તેનું સામ બતાવવા માટે જ કહેલ છે પણ આ પ્રકારની વિદુર્વણા પહેલાં તેણે કરી નથી અને ભવિષ્યમાં કરશે પણ નહીં ! સૂ. ૯
રીકાથ ધરણેન્દ્ર પ્રકરણમાં વર્ણવ્યા પ્રમાણની તિષિક દેવેની સમૃદ્ધિ વિકા આદિનું વર્ણન સાંભળીને બીજા ગણધર અગ્નિભૂતિને શક્રેન્દ્રની સમૃદ્ધિ આદિ dear मामिलामा थाय छे." भंते ति" तथा"Bard "मे समाधान शन' તે મહાવીર પ્રભુને વંદણ નમસ્કાર કરે છે ત્યાર બાદ તેઓ વિયથી તેમને આ अभाए पछे छे.-" जण भत "RNEna. " जोसिदे जोइसराया.