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ममेयचन्द्रिकाटीका श. ३उ. १ देवराजशकेन्द्र वक्तव्यतानिरूपणम्
चन्द्रः सूर्यो वा 'एवं महिडीए' एव महर्द्धिकः एतादृशधरणेन्द्रवन्महासमृद्धिशाली 'जान' या 'एवइयं च ' एतावच पूर्वर्णितावधिकञ्च 'पभू' प्रभुः समर्थः 'विकृवित्तए' त्रिकुर्वितम् विकुर्वणां कर्तु समर्थ इति पूर्वेणान्वयस्तदा 'भंते! भदन्त ! 'सक्केणं' शक्रः खलु मथमसौधर्मदेवलोकस्वामी, 'देविंदे' देवेन्द्रः, 'देवराया' देवराजः 'केमहिड़ीए' कीदृशमहर्द्धिसम्पन्नः, 'जात्रा' - यावत् 'केवड्यं चणं' कियच खलु कियदवधिकमिति यावत्, 'पभू' प्रभुः विकुव्वित्तए' विकुर्वितुम् ।
भगवानाह 'गोयमा ! सक्केणं' इत्यादि । हे गौतमगोत्रीय अभिभूते ! शक्रः खलु 'देविदे' देवेन्द्रः 'देवराया' देवराजः 'महिड्डीए' महर्द्धिकः अतिशयसमृद्धिशाली, 'जाव महाणुभागे' यावत - महानुभागः महाप्रभावशाली ad, पात्रच्छदेन महाद्युति- महाबल - महायशी महासौख्यः 'सेणं' स खलु देवेन्द्रः सिंदे जोइसराया एवं महिडीए जाव एवइयं च णं पभू विउब्वित्तए' ज्योतिपेन्द्र ज्योतिपराज चन्द्र अथवा सूर्य ऐसी घडी ऋद्धि के अधिपति है और इतनी बडी विकुर्वणा करने के लीये शक्ति के भंडार हैं तो 'ते' हे भदन्त ! सक्केणं देविंदे देवराया के महिडीए जाव केवइयं चणं भू विकुव्वित्तए' जो प्रथम सौधर्मदेवलोक का स्वामी शकेन्द्र है कि जो देवेन्द्र और देवराज है कैसी बडी ऋद्धिवाला है और कितनी घडी विक्रिया कर सकने में समर्थ है ? इस प्रकार अग्निभूति का प्रश्न सुनकर भगवान्ने कहा 'गोयमा' हे गौतम गोत्रीय अग्निभूति 'सकेंगं देविंदे देवराया महिडीए जाव महाणुभागे' देवेन्द्र शक्रराज शक्रेन्द्र अतिशय समृद्धिशाली है- यावत् वह महाप्रभावसंपन्न है । यहां यावत् शब्दसे " महाद्युति, महाबल, महायश महासौख्य" इन पदोंका ग्रहण हुआ है । वह शक्रेन्द्र वहां ३२ बत्तीस एवं महिडीए जाव इयं च णं पभू विकृवित्तए " ज्योतिपरान्न ज्योतिपेन्द्र चंद्र અથવા સૂર્ય આટલી બધી ઋદ્ધિવાળા છે અને આટલી મધી વિધ્રુવ ણુા શકિત ધરાવે છે तो " असे " से लहन्त ” सक्केणं देविंदे देवराया के महिडीए जोत्र केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए" पहेला देवतेोउना स्वाभी, देवरान, हेवेन्द्र राई देवी ઘણી જે ભારે સમૃદ્ધિવાળેા છે ? તે કેવી વિષુČણા કરવાને સમર્થ છે ? ત્યારે મહાવીર अलुमे अग्निभूतिने या प्रभा भवाण माय्यो " सक्केण देविदे देवराया महिडीए " ४त्याहि हे गौतम अग्निभूति देवेन्द्र हेवराय श घी सारे समृद्धि વાળે છે અહીં 46 यावत् " पहथी नीयेना सूत्रा श्रोछे - महाद्युति,
महावल महायश महासौख्य " ते महाद्यति, भडामण, भडायश, भड़ासु भने
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