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भगवतीसूत्रे
संपत्तीए विकुविसु वा विकुब्बड़ वा विकुव्विस या ॥ ०९ ॥ छाया - भदन्त ! इति, भगवान् द्वितीयो गौतमोऽग्निभूतिरनगारः श्रमण arai महावीरं चन्द, नमस्यति, बन्दित्वा नमस्थित्वा एवमवादीत् यदि भदन्त ! ज्यौतिषेन्द्रः, ज्योतिपराजः एवं महर्द्धिगः, यावत् - एतावत्र म विकुर्वितुम्, शक्को भदन्त ! देवेन्द्रः देवराजः किमहर्द्धिकः यावत् क्रियच प्रभुविकुवितुम् ? गौतम । शक्रो देवेन्द्रः, देवराजो महर्द्धिकः, याद महानुभागः स द्वात्रिंशतो विमानावासशतसहस्राणाम्, चतुरशीतेः सामानिकदेवराज शकेन्द्र वक्तव्यता
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"भंते ! त्ति भगव' दोच्चे गोयमे' इत्यादि
सूत्रार्थ - ( भंते! त्ति) हे भदन्त ! इस प्रकारसे संबोधित करके (भगव दोच्चे गोग्रमे) भगवान् द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगारने (समण भगव महावीरं वंदs नमसह ) श्रमण भगवान् महावीर को वंदना की और नमस्कार किया ( वंदित्ता नर्मसित्ता) चन्दना नमस्कार करके (एव वयासी ) इस प्रकार पूछा ( जइणं भंते । जोइसिंदे जो इसराया एवं महिडीए जाव एवइयं च णं पभू विउच्चित्तम्) हे भदन्त ! यदि ज्योतिपेन्द्र ज्योतिपराज इतनी बडी ऋद्धिवाला है और ऐसी विकुर्वणा शक्तिवाला है (सणं भंते! देविंदे देवराया केमहिडीए जाव केचइयं च णं पभू चिउवित्तए) तो हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शकेन्द्र कितनी बडी विभूतिवाला है और कितनी घडी विकुर्वणा शक्तिवाला है ? | (गोयमा) है गौतम ! (सक्केणं देविदे देवराया महिडीए जाव દેવરાજ શકેન્દ્ર વક્તવ્યતા
सूत्रार्थ - (भंतेत्ति ) " हे अहन्त मे सम्भोधन ने (भगवं दोच्चे गोयमे) भगवान गीन गौतममग्निभूति आयुशार (समण भगवं महावीरं वंदइ नमसइ) श्रभयु भगवान महावीरने वहा नमस्कार अर्या (वंदित्ता नमसित्ता) वाय नमस्र ४शन तेभणॆ (एवं बयासी) तेमने आ प्रभा पूछयु - जइणं भंते जोइसिंदे जोइसराया एवं महिडीए जाव एवइयं च णं पभू विउव्वित्तए) हे अहन्त ले જ્યાતિષેન્દ્ર યાતિરાજ આટલી બધી સમૃદ્ધિ આદિથી યુકત છે, અને આટલી અધી बटुवा शक्तिथा संपन्न छे तो सक्केणं भंते देविंदे देवराया के 'महिडीए जात्र केवइयं च णं पभूविउन्नित्तए) हे अहन्न देवेन्द्र देवराज राजेन्द्र डेटसी भहां समृद्धि युक्त हे? ते ठेवी वर्षा शक्तिवान छे गोयमा के गौतम सक्केणं देविंदे देवराया महिड्डीए जाब महाणुभागे थकेन्द्र श४२२०४ हेवेन्द्र सारे संमृद्धि यश