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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३. उ. १ देवराजशक्रेन्द्रवतव्यता निरूपणम्
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साहस्रीणाम् यावत्- चतसृणां चतुरशीत्याः आत्मरक्षक साहस्रीणाम्, अन्येषां यावत्- विहरति, एवं महर्द्धिकः, यावत् - एतावच मभुर्विकुर्वितुम् एवं यथैव चमरस्य तथैव भणितव्यम्, नवरम् - द्वौ केवलकल्पौ जम्बूद्वीपो द्वीपी, अवशेषं तच्चैत्र एप गौतम ! शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अयम् एतदूपो विषयः,
मात्रम् उक्तम्, नो चेत्र सम्पत्या विकुर्वति विकुर्विष्यति वा ॥ ० ९ ॥ महाणुभागे) हे गीतम । शमेन्द्र शकराज देवेन्द्र बहुत पडी ऋद्धिवाला है - यावत् वह महाप्रभाववाला है । (से णं बत्तीसार विमाणावासस्यसहस्साणं चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं जाव चउन्हं चउरासीणं आयु रक्खसाहस्सीणं अन्नेसिं जाव विहरड़ ) वह ३२ बत्तीस लाख विमानादासों का ८४ चौरासी हजार सामानिक देवों का, चार चौरामी हजार आत्मरक्षक देवोंका - अर्थात् ३ त्रण लाख ३६ छत्तीस हजार आत्मरक्षक देवोंका तथा औरभी देवों का स्वामी बना हुआ है और दिव्य भोगों को भोगता रहता है ( एवं महिड़ीए, जाव एवइयं च णं पभू विनिवत्तए एवं जहेच चमर स्स हे भाणियव्च ) इस तरह वह देवेन्द्र देवराज शकेन्द्र ऐसी घडी ऋद्धिवाला है। तथा इसकी विकुर्वणा करने की शक्ति जैसी चमरेन्द्रकी कही गई है वैसी है । (णवरं ) परन्तु उसकी विकुर्वणा में और इसकी चिकु मेंो अन्तर है वह इस प्रकार से है (दो केवल कप्पे जंबूद्दीवे दवे अवसेसं तच्चेव ) शकेन्द्र अपनी विकुर्वणा से दो जंबूद्वीपोको भर सकता है तब कि चमरेन्द्र अपनी विकुर्वणासे एक जम्बूatrat ही भर सकता है । बाकी का कथन सव चमरेन्द्र की तरह से गज अन्ति सुख भने प्रभावथी युक्त छे. ( से णं बत्तीसार विमाणावास सय सहस्साणं चउरासीए सामाणियसाहस्सीण जाव चउण्डं चउरासीणं आयरक्स साहस्सीण अन्नेसिं Goa fasts) २ साण विभानावास पर ८४ गोर्यासीला सामानि देवा પર ત્રણ લાખ છત્રીસ હજાર આત્મરક્ષક દેવેશ પર તથા અન્ય દેવા પર આધિપત્ય ભાગવે छे ते त्यां गने४ हिव्य लोगो लोगवे छे ( एवं महिड्डीए जाव एवइयं च णं पभू विउत्तिए एवं जहेव चमरम्स तव भाणियव्वं) या शेते ते देवेन्द्र देवराष्ट શકેન્દ્ર ધણી ભારે ઋદ્ધિ આદિથી સંપન્ન છે ચમરેન્દ્રના જેવી જ વિપુર્ણ શકિત ધરાવે છે (णवरं) पथ ते मन्नेनी विषुवा शक्तिमा नाथेन तावत छ ( दो केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे अवसेस तच्चेव) राजेन्द्र तेनी विश्र्व ॥ शतिथी उत्पन्न श्रेक्षा રૂપા વડે એ જ બુદ્રીપાને ભરી શકે છે પણ ચમરેન્દ્ર તેની વિષુવર્ણ શક્તિથી ઉત્પન્ન કરેલા રૂપે વડે એક જ જાતીને ભરી છે માટીને મધ વર્ણન ચમર પ્રમાણે