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भगवतीमो प्रमजन महाघोपाणां भवनपतीनां समृद्धिविर्यणाशत्यादि बोध्यम् । तदाह"एवं जाय-थणियकुमारा' एवं गायत् स्तनितकुमारा:, स्तनितकुमारनन्देन भवनपतिदेवत्रिशेपो गृह्यते । अन्नत्य यावत्पदमुनिताराय उक्तः तदुक्तं प्रमा पनायाम्-"चमरे धरणे तह वेणुदेव-हरिकत-अग्गिवाहे य, पुणे जलकंतेवि य अमिय विलंये य घोसेय" एते दक्षिणनिकापेन्द्राः, इतरे तु "यनि-भूगाणंदे वेणु दालि-हरिस्सहे अग्गिमाणयवसिढे, जलप्पमे अगियवाहणे पहंजणे महाघोस" इति औदीच्येन्द्राः वाणावंतर-जौरसीया वानव्यन्तगयन्तरेन्द्रा अपि सपरिचारा धरणेन्द्रवत् समृदयादिशालिनी विज्ञेयाः । बने भवा पानाः, विविधम् विकुर्यणाशक्ति आदि जानना चाहिये । यही बात 'एवं जार प्रणिय कुमारा' इस पाठ द्वारा पुष्ट की गई है। भवनवामी देवांका एक मेद स्तनितकुमार है। यहां के यावत्पदसे जो आशय निकलता है वह हमने कह दिया है। अर्थात् चमर धरणेन्द्रकी तरह ही स्तनितकुमार तक सबकी समृद्धि और विकर्णाशक्ति आदि जाननी चाहिये । प्रज्ञापनामें यही कहा है-'चमरे धरणे तह वेणुदेव हरिकंत अग्गिसीहे य, पुण्णे जलकते विय, अमिय चिलंवे य घोसे य' ये दक्षिणनिकाय के इन्द्र हैं । तथा-'यलि भूयाणंदे वेणुदालि हरिस्सह अग्गिमाणव, वसिढे, जलप्पभे, अमियवाहणे, पहंजणे महाघोसे ये उत्तरनिकाय के इन्द्र हैं । 'बाणमंतर जोइसिया वि' सपरिवारवानव्यन्तरेन्द्र तथा ज्योतिपिकेन्द्र भी धरणेन्द्र की तरह समृद्धयादिशाली जानना चाहिये। વાહન પ્રભજન અને મહાષ એ ઈન્દ્રોની સમૃદ્ધિ તથા વિબુર્વણ શકિત આદિના વિષયમાં पर यम२ मने परोन्द्र प्रभारी । सन् १ पात "एवं जाव थणियकुमारा આ સૂત્રપાઠ દ્વારા સમજાવવામાં આવી છે ભવનાવાસી દેને એક ભેદ સ્વનિતકુમાર . છે કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે ઉપરોકત ઈન્દ્રોની સમૃદ્ધિ તથા વિકવણું શકિન અમર धरीन्द्र समान ४ छ प्रज्ञापन। सूत्रमा पy मे पाती छे " चमरे धरणे तह वेणुदेव हरिकंत अग्गिसीहे य पुण्णे जलकते वि य अभिय बिलंवे य घोसेय" यभ२, ५२, वाटेव, त, अभिपि , पू, Arid ममित भने सुधाष, मेक्षिनिया -द्रो तथा बलिभूयाणंदे वेणुदालि हरिस्सहे अग्गि माणव, बसिहे जलप्पे अमियवाहणे पहंजणे महाघोसे" ति भूतान शहारी હરિસહ, અગ્નિમાણવ, વશિષ્ટ, જલપ્રભ, અમિતવાહન, પ્રભંજન, અને મહાઘોષ, એ अत्तनिकायना-दछ" घाणमंतरजोइसिया वि" सपरिवार पालव्यन्तन ज्योति देवानाप की समृद्धिमा यस छे. वने भवावाना तथा