Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 32] [प्रज्ञापनासूत्र [14 प्र] वह (पूर्वोक्त) जीवप्रज्ञापना क्या है ? [14 उ.] जीवप्रज्ञापना दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार-(१) संसारसमापन्न (संसारी) जीवों की प्रज्ञापना और (2) असंसार-समापन्न (मुक्त) जीवों की प्रज्ञापना। विवेचन - जीवप्रज्ञापना : स्वरूप और प्रकार-प्रस्तुत सूत्र 14 से जीवों की प्रज्ञापना प्रारम्भ होती है, जो सू. 147 में पूर्ण होती है। इस सूत्र में जीव-प्रज्ञापना का उपक्रम और उसके दो प्रकार बताए गए हैं / __ जीव की परिभाषा--जो जीते हैं, प्राणों को धारण करते हैं, वे जीव कहलाते हैं। प्राण दो प्रकार के हैं--द्रव्यप्राण और भावप्राण / द्रव्यप्राण 10 हैं-पांच इन्द्रियां, तीन बल-मन-वचन-काय, श्वासोच्छ्वास और आयुष्यबल प्राण / भावप्राण चार हैं-ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य / संसारसमापन्न समस्त जीव यथायोग्य भावप्राणों से तथा द्रव्यप्राणों से युक्त होते हैं। जो प्रसंसारसमापन्नसिद्ध होते हैं, वे केवल भावप्राणों से युक्त हैं।' संसारसमापन्न और प्रसंसारसमापन्न को व्याख्या-संसार का अर्थ है ससार-परिभ्रमण, जो कि नारक-तिर्यञ्च-मनुष्य-देवभवानुभवरूप है, उक्त संसार को जो प्राप्त हैं, वे जीव संसारसमापन्न हैं, अर्थात्--संसारवर्ती जीव हैं / जो संसार-भवभ्रमण से रहित हैं, वे जीव असंसारसमापन्न हैं / 2 असंसारसमापन्न-जीवप्रज्ञापना : स्वरूप और भेद-प्रभेद 15. से कि तं असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा? असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा दुविहा पण्णत्ता। तं जहा–अणंतरसिद्ध असंसारसमावण्णजीव. पण्णवणा य 1 परंपरसिद्धप्रसंसारसमावष्णजीवपण्णवणा य 2? [15 प्र.] वह (पूर्वोक्त) असंसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना क्या है ? [15 उ.] असंसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार-१अनन्तरसिद्ध-प्रसंसार-समापन्नजीव-प्रज्ञापना और २-परम्परासिद्ध-असंसार-समापन्नजीव-प्रज्ञापना / 16. से कि तं अणंतरसिद्धप्रसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा? अणंतरसिद्धप्रसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा पन्नरसविहा पन्नत्ता। तं जहा-तित्थसिद्धा 1 अतित्थसिद्धा 2 तित्थगरसिद्धा 3 प्रतित्थगरसिद्धा 4 सयंबुद्धसिद्धा 5 पत्तेयबुद्धसिद्धा 6 बुद्ध बोहियसिद्धा 7 इत्थोलिंगसिद्धा 8 पुरिसलिंगसिद्धा नपुंसकलिंगसिद्धा 10 सलिगसिद्धा 11 प्रणलिंगसिद्धा 12 गिहिलिंगसिद्धा 13 एगसिद्धा 14 प्रणेगसिद्धा 15 / से तं प्रणंतरसिद्धप्रसंसारसमावण्णजोवपण्णवणा। [16 प्र.] वह अनन्तरसिद्ध-असंसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना क्या है ? [16 उ.] अनन्तर-सिद्ध-असंसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना पन्द्रह प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है--(१) तीर्थसिद्ध, (2) अतीर्थसिद्ध, (3) तीर्थकरसिद्ध, (4) अतीर्थंकरसिद्ध, (5) स्वयं 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 7 2. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org