Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] [ 31 . (3) पांच रसों में से प्रत्येक के रूप में परिणत पुद्गल, यदि पांच वर्ण, दो गन्ध, पाठ स्पर्श और पांच संस्थानों के रूप से परिणत हों तो उन पांचों के 20+20+20+20+20 - 100 भंग हो जाते हैं। (4) आठ स्पर्शों में से प्रत्येक के रूप में परिणत पुद्गल यदि पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस, छह स्पर्श (प्रतिपक्षी और स्व स्पर्श को छोड़कर) तथा पांच संस्थानों के रूप से परिणत हों, तो उनके 23+231 23+23+23+23+23+23 = 184 भंग हो जाते हैं / (5) पांच संस्थानों में से प्रत्येक के रूप में परिणत पुद्गल, यदि पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस तथा आठ स्पर्शों के रूप से परिणत हों तो उनके 20+20+20+20+20 = 100 भंग होते हैं / इस प्रकार वर्णादि पांचों के पारस्परिक सम्बन्ध की अपेक्षा से 100+46 +100+184 +100 = कुल 530 भंग (विकल्प) निष्पन्न होते हैं। इसे स्पष्ट रूप से समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए—मान लो, कुछ स्कन्धरूप पुद्गल काले वर्ण वाले हैं, यानी कृष्णवर्ण के रूप में परिणत हैं, उनमें से गन्ध की अपेक्षा से कोई सुगन्धवाले होते हैं, कोई दुर्गन्ध वाले भी होते हैं / रस की अपेक्षा से-वे तिक्त रस वाले भी हो सकते हैं, कटुरस वाले भी, कषायरस वाले भी, अम्लरस वाले भी और मधुररस वाले भी होने संभव हैं / स्पर्श को दृष्टि से सोचें तो वे कर्कश आदि आठों ही स्पर्शों में से कोई न कोई किसी न किसी स्पर्श के हो सकते हैं / संस्थान की अपेक्षा से विचार किया जाए तो वे कृष्णवर्ण-परिणत पुद्गल परिमण्डल भी होते हैं, वृत्त भी, त्रिकोण भी, चतुष्कोण भी और आयत आकार के भी होते हैं / इस प्रकार एक कृष्णवर्णीय पुद्गल के साथ प्रत्येक गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से 20 भंग हो जाते हैं। इसी तरह पूर्वोक्त सभी भंगों का विचार कर लेना चाहिए। विकल्पों की संख्या स्थल दृष्टि से, सूक्ष्मदष्टि से नहीं-यद्यपि बादरस्कन्धों में पांचों वर्ण, दोनों गन्ध, पांचों रस पाए जाते हैं, अतएव अधिकृत वर्ण आदि के सिवाय शेष वर्ण आदि से भी भंग (विकल्प) हो सकते हैं, तथापि उन्हीं बादर स्कन्धों में जो व्यावहारिक दृष्टि से केवल कृष्णवर्णादि से युक्त बीच के स्कन्ध हैं, जैसे-देहस्कन्ध में ही एक नेत्रस्कन्ध काला है, तदन्तर्गत ही कोई लाल है, दूसरा अन्तर्गत ही शुक्ल है, उन्हीं की यहाँ विवक्षा की गई है। उनमें दूसरे वर्णादि संभव नहीं हैं। स्पर्श की प्ररूपणा में, प्रतिपक्षी स्पर्श को छोड़कर किसी एक स्पर्श के साथ अन्य स्पर्श भी देखे जाते हैं। अतएव यहां जो भंगों की संख्या बताई गई है, वह युक्तियुक्त है। किन्तु यह विकल्पसंख्या स्थलदृष्टि से ही समझनी चाहिए / सूक्ष्मदृष्टि से देखा जाए तो तरतमता की अपेक्षा से इनमें से प्रत्येक के अनन्तअनन्त भेद होने के कारण अनन्त विकल्प हो सकते हैं। __ वर्णादि परिणामों का अवस्थान जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक रहता है।' जीवप्रज्ञापना : स्वरूप और प्रकार 14. से कि तं जीवपण्णवणा? जीवषण्णवण्णा दुविहा पण्णता। तं जहा-संसारसमावण्णजीवपण्णवणा य 1 असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा य 2 / 1. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक 10, 17-18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org