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उत्पन्न हुआ और उन्होंने यजमानों की स्तुति करना बन्द कर दिया (शायद इसकी आवश्यकता भी न रही हो)।
और "विद्वांसो हि देवाः” का प्रचार प्रारंभ किया गया । तथा सब देवरूप ब्राह्मण बन गया । जैसाकि कहा हैब्रामणो वै सर्वां देवताः ।। ते० | १ ४ १४।२, ४॥ एते वे देचा अहुतादो यद् ब्राह्मणाः ॥ गो० उ० १६ अथ हेते मनुष्यदेवा ये मागणाः ।।१०।११। देच्यो वे वर्णो ब्राह्मणः ॥ तै० ११२। ६ । ७
इस प्रकार ब्राह्मण ग्रन्थों में ब्राह्मणोंकी स्तुति व महिमाका विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है । प्रथम तो ये ब्राह्मण यजमान
और उसके रथ, अश्व, वस्त्र आदिकी स्तुतिमें मन्त्रोंका निर्माण, करते थे परन्तु अब ये लोग ब्राह्मणोंका और अज्ञोंका वर्णन करने वाली श्रुतियाँ बनाने लगे। तथा प्रजापति, ब्रह्मा, पुरुष, विराट,
आदि नामसे एक नयादेव निर्मित हुअा। जिसके विषयमें विशेष प्रकाश प्रजापति प्रकरणमें डालेंगे 1 परन्तु ब्राह्मणोंने अपनी प्रशंसाके साथ साथ यज्ञकी स्तुतिके भी मन्त्रोंका खूब ही निर्माण किया क्योंकि उस समय एक मात्र यज्ञ ही उसका आश्रय था। 'अतः देवताओंका स्थान भी यज्ञको ही दे दिया गया। उस समय प्राणोंने कहना प्रारंभ किया कि अय भोले प्राणियों जिन देवताओंको श्राप लोग उपासना करते हो वे तो हमारे द्वारा बनाये गये हैं।
(अस्माभिः कृतानि देवतानि) अतः श्राप लोग सर्वदेवरूप ब्राह्मणों की पूजा किया करो ? तथा मनुस्मृति प्रारिमें कहा गया है कि
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