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जरकलश
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जब वह अन्तिम कुलकर उसके साथ रह रहे थे तब इन्द्र अपने मन में विचार करता है कि जग में श्रेष्ठ देवों और मनुष्यों के द्वारा वन्दनीय, महान् संसाररूपी समुद्र से तारनेवाले, कामरूपी जड़ को काटने के लिए कुठार, आदरणीय आदि जिन इन दोनों से उत्पन्न होंगे। यह सोचकर उसने निश्चय कर लिया और कुबेर के लिए आदेश दिया - " हे कुबेर, तुम शीघ्र चार द्वारोंबाला सुन्दर अत्यन्त भला नगरवर बनाओ।" तब उस आदेश को यक्ष ने स्वीकार कर लिया और शीघ्र ही उसने साकेत नगर की रचना कर डाली।
घत्ता–जहाँ पवनरूपी आचार्य के कारण सुन्दर पत्तोंवाले (सुपात्रोंवाले) नन्दन बन, पुष्पों के मुखों से मुक्त पराग से मतवाले होकर नृत्य कर रहे हैं ।। १७ ।
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स्वर्ग्रई महाराज अनदजक्षादेसम ||
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सरोवर में जहाँ लक्ष्मी के चरण-स्पर्श से कमल सन्तोष के साथ विकसित होता है, दूसरों के द्वारा भुक्त और अन्धकार के दोष से मुक्त अपने कोश (धन, जो तम अर्थात् क्रोध से मुक्त है, अथवा कोश पराग का घर) से कौन आनन्दित नहीं होता ! उस वैसे कमल को बालगज क्यों नष्ट करता है? मानो इसी कारण मधुकरकुल क्रोध से आवाज करता है। वह गज क्या डरकर उसे (भ्रमर कुल को) दान (मदजल) देता है, दूसरा भी महान् व्यक्ति विनीत होता है!
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